लघुकथा

कांच की दीवार

आज माधवी और अमर में फिर वाद विवाद होगया । इतनी उम्र साथ साथ व्यतीत होने के बाद भी कभी कभी तकरार भयंकर रुप ले लेती है। ऐसा नहीं कि दोनों में प्यार नहीं। एक के बिना दूसरा नहीं रह सकता।  दोनों बेटियों की शादियाँ होगयी । बेटे की भी शादी हो गयी फिर भी कोई फांस माधवी को चुभती रहती है। आज घर में सब बच्चे आये हुये थे । बेटी दामाद बेटा बहू उखड़ आई अमर के परिवार की पुरानी बातें, बस उन पर माधवी ने कुछ बोल दिया अब तो अमर का मूड बिगड़ गया और शुरू होगये माधवी को सुनाने के लिये । बड़ी बेटी अवनी एक दम से बोल पड़ी बस पापा अब आगे मां से कुछ नहीं कहेगें हर समय आप मां पर अपने परिवार की गलतियों को जिम्मेदार ठहराते हो । अवनी बोली पापा हम लोग कुछ नहीं भूले पर सोचते थे कि अब मां थोड़ा सुकून में रहें । हमें मालूम हैं उनकी तुच्छ हरकतों को आपने भी झेला है। मां हमेशा आप और हमारी ढाल बन कर खड़ी रहीं । अवनी बोली मै कैसे भूल जाऊं आपके छोटे भाई जो आपके बच्चे की तरह थे आपने उनको शिक्षा दिलाई अपने पास रखा बहुत सीमित में से हम बच्चो के साथ पूरे परिवार के बच्चे पढ़ने के लिये हमारे यहाँ आते रहे फिर भी मां ने आपको मना नहीं किया बल्कि हम भी तीनों बढ़े हो रहे थे हमको ही समझाती बेटा अपना परिवार हम शिक्षा के माध्यम से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं तो निभायेगे पर आपके परिवार ने हमेशा मां को ही दोष दिया कि वह अपने बच्चों में और सब बच्चों में पक्षपात करती है। अमर बिलकुल चुपचाप सुन रहे थे माधवी की आंखों से आंसू टपक रहे थे ।
          आज जैसे अवनी अपने अपने अन्दर की पूरा दर्द जैसे सबके सामने रखने पर आमदा थी । अवनी के पति अनुज बहुत बोल रहे थे अवनी प्लीज छोड़ सब बात पर नहीं वह बोली पापा मैं कैसे भूल जाऊं जब सबके सामने आपको चाचाओं ने बोला देखेगे अपने बच्चों को कैसे काबिल बनाओगे अपनी बेटियों की कैसे शादी करोगे । आप रोते रहे तब मां ही थी जिन्होंने उनको उत्तर दिया पैसे से कोई काबिल नहीं बनता हुनर से हर शख्स अपने को निखारता है। बस मां ने उसी दिन कसम खाली थी कि मै अपने तीनों बच्चो को उच्च शिक्षा दिलाऊंगी । आज हम आपकी मेहनत और मां के त्याग से इस लायक हैं । अमर बहुत देर बाद बोले बेटा ठीक है उन्होंने मेरे साथ और माधवी के साथ बहुत गलत किया पर हाथ की लकीरें नहीं मिटती खून के रिश्ते खत्म नहीं होते ।अवनी ने कहा पापा अब बहुत होगया जो कांच की दीवार बीच में लग गयी है वह अब टूट नहीं सकती ।
— डा. मधु आंधीवाल

डॉ. मधु आंधीवाल

पति - डा. सी.के. आंधीवाल जन्म तिथि- 3-1-1957 पता - 1/64 ,सुरेन्द्र नगर ,अलीगढ़ राजनीति भाजपा पार्टी 3 बार नगर निगम अलीगढ़ की पार्षद रही हूँ । सक्रिय राजनीति में हूँ । शिक्षा - एम.ए, बी.एड, एल.एल.बी, पी- एच डी साहित्यिक फेसबुक ग्रुपों में रचनाये, मोमस्प्रेसो में ब्लॉग , शीरोज एप पर रचनाये,हिन्दी प्रतिलिपि एप पर रचनाएँ ,दैनिक जागरण और स्वदेश समाचार पत्र ,प्रवासी संदेश बोम्बे, द ग्राम टुडे अन्य समाचार पत्रों में पत्र और रचनाएँ ,स्टोरी मिरर एप पर रचनाये लिखती हूँ और बहुत प्रशस्ति पत्र मिले हैं।दो काव्य संग्रहों में भी मेरी कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ है। madhuandhiwal53@gmail.com 9837382780