भाषा-साहित्य

हिंदी के बोल बड़े ही अनमोल

हिंदी के बोल बड़े ही अनमोल, चहुं दिशा गूँज औ बज रहा ढ़ोल

जी हाँ हम सभी जानते हैं कि हमारी मातृभाषा हिंदी का गौरव कितना महान है | 14 सितंबर के दिन हर वर्ष हम इस दिन को बड़े ही उत्साह से मनाते हैं और बड़े-बड़े साहित्यिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं | कितनी ही साहित्यिक संस्थाओं द्वारा बच्चों के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं ताकि वे अपनी मातृभाषा के गौरव को समझ सकें | हमारी मातृभाषा में लिखे गीतों पर विदेशी थिरकते हैं, झूमते हैं हमारी मातृभाषा में नमस्ते कह अभिवादन करने में खुशी महसूस करते हैं | “जय हो” जैसे गीत पर पूरा विश्व गर्व करता है | हा सब के लिए यह गर्व के पल होने चाहिए कि हमारी मातृभाषा को विश्व पटल पर गुनगुनाया जाता है किन्तु आज हम सभी भारतीय अपने बच्चों के अंग्रेज़ी बोलने पर गर महसूस करते हैं ऐसा क्यों ?

हम हर वर्ष अपने बच्चों को क्यों हिंदी दिवस पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकते हैं या कतराते हैं ? विद्यालय स्तर से ही अभिभावक अपने बच्चों को इस तरह से ढाल रहे हैं कि अब उनकी भाषा हिंगलिश हो चुकी है ! आज इसी दिशा मे सुधार लाने हेतु हमारी “हिंदी की गूँज” संस्था राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा को हर विद्यार्थी, हर नागरिक को पौधे की तरह सींच रही है ताकि हर क्षेत्र में काम-काजीय स्तर पर, बोलचाल के स्तर पर, लेखन के स्तर पर हमारी मातृभाषा का विकास हो सके | संस्था के प्रमुख आदरणीय नरेंद्र सिंह नीहारजी और उनका समस्त कारवां मातृभाषा को विश्व भाल पर सजाने का ध्येय ले आगे बढ़ रहे हैं |

भारत के अलग- अलग राज्यों में अपनी विभिन्न शाखाओं के माध्यम से एक अग्रणी और सफल मार्गदर्शक बन विद्यालय,विश्व विद्यालय स्तर पर अनेकानेक कार्यक्रमों का निरंतर आयोजन करते हुए अपने बुलंद जज़्बे और हौंसलों संग संस्था अपनी मातृभाषा को शीर्ष स्थल तक ले जाने के लिए एक सच्ची साधना और संकल्प संग प्रसिद्धि की सीढ़ियों को चढ़ रही है |

दिन-प्रति-दिन हिन्दी की गूँज का परिवार समृद्ध हो रहा है क्योंकि भावनाएँ सबकी एक हैं, मंज़िल सबकी एक हैं जैसा की नीहार जी ने कहा –
‘आओ मिलकर आज कह दें दुनिया वालों से यही,
हिन्दी की बिंदी लगेगी विश्व तेरे भाल पर’

अपनी ही मातृभाषा का उत्थान है इसमें सच्ची साधना और लग्न ही हमारे अस्त्र हैं | यदि हम अपने परिवार से शुरुआत करेंगे और अपने बच्चों को हिन्दी के कठिन शब्दों का मायना हिंदी में बताएँगे न कि अंग्रेज़िक सहारा लेकर तो अवश्य ही हम हिंदी भाषा का ही नहीं स्वयं का और हिंद का उत्थान करेंगे | शुरुआत के लिए न कोई वक्त तय है और न समय बस सच्ची आस्था और हमारे भीतर की आवाज़ जब गूँज बन जाए हमारे लिए समझिए वही सुअवसर है | आप सभी हिंद वासियों से यही कहना चाहूंगी कि –
जैसा प्रेम पति को रहता, निज पत्नी की बिंदी से,
शिवशंकर को अमर प्रेम था माँ गंगा कालिंदी से,
वीरों की भूमि है ये , अरे गर्व करो तुम हिंदी पे,
हिंद की धरती पर जन्मे प्रेम करो तुम हिंदी से

— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।