स्वास्थ्य

एसिडिटी : कारण और निवारण

यह आमतौर पर सभी को हो जाने वाली बीमारी है। इसको आयुर्वेद में अम्ल पित्त कहते हैं। हमारे आमाशय में पाचन क्रिया के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पेप्सिन का निर्माण होता है। सामान्यतया यह अम्ल तथा पेप्सिन आमाशय में ही रहता है तथा भोजन पचाने का कार्य करता है। यह सीधे भोजन नली के सम्पर्क में नहीं आता, लेकिन कई बार शरीर में आई विकृति के कारण एसिड तथा पेप्सिन भोजन नली में आ जाता है। जब ऐसा बार-बार होता है तो आहार नली में सूजन तथा घाव हो जाते हैं। इसी को एसिडिटी, हाइपरएसिडिटी या अल्सर कहते हैं।

एसिडिटी का प्रमुख लक्षण है रोगी के सीने या छाती में जलन होना, खट्टी डकारें आना, मुँह में खट्टा पानी आना आदि। कई बार एसिडिटी के कारण सीने या/और पेट में दर्द भी रहता है। जब ऐसा बार-बार होता है तो समस्या गम्भीर हो जाती है। इससे रोगी को खून की उल्टी भी हो सकती है। लम्बे समय तक अल्सर रहने से केंसर होने का खतरा भी हो सकता है।

प्राकृतिक चिकित्सा में एसिडिटी का उपचार बहुत सरल है। सबसे पहले तो रोगी को अम्लीय वस्तुएँ देना पूरी तरह बन्द कर देना चाहिए। ऐसी कुछ वस्तुएँ हैं- चाय, कॉफी, शीतल पेय, दूध, दही, मैदा, पालिश किये हुए चावल, तली हुई चीज़ें, मिर्च-मसालेदार चटपटी वस्तुएँ आदि। गर्म चीजें भी एसिडिटी और अल्सर का रोग और कष्ट बढ़ाती हैं, इसलिए सारी गर्म चीज़ें तत्काल बन्द कर देनी चाहिए। यहाँ तक कि सब्जी भी ठंडी करके खानी चाहिए।

रोगी के भोजन में क्षारीय वस्तुओं की अधिकता होनी चाहिए। ऐसी वस्तुएँ हैं- ताज़े फल (आम और केला को छोडकर), हरी सब्ज़ियाँ, फलों का रस, चोकर समेत आटे की रोटी, कन समेत चावल और सूखे मेवा। सभी तरह के खट्टे फल जैसे सन्तरा, मुसम्मी, अनार, अनन्नास, नीबू आदि क्षारीय होते हैं, इसलिए इनको लेने में घबराना नहीं चाहिए।

एसिडिटी के रोगियों को दिन में केवल तीन बार खाना चाहिए- प्रात:, दोपहर और सायंकाल। कई रोगियों को बहुत भूख लगती है और वे बार-बार खाना चाहते हैं। ऐसा करना उचित नहीं। दो भोजनों के बीच में भूख लगने पर उनको शीतल जल या फलों का रस पी लेना चाहिए। इनसे पेट की जलन शान्त होती है।

एसिडिटी को दूर करने में पेट पर मिट्टी की पट्टी, ठंडा कटिस्नान, टहलना, अनुलोम-विलोम प्राणायाम तथा शीतली प्राणायाम बहुत सहायक होते हैं।

एसिडिटी में भूलकर भी कोई दवा नहीं लेनी चाहिए। दवाओं से यह रोग कभी नहीं जाता। जबकि ऊपर बताये गये नियमों पर चलकर कोई भी व्यक्ति एक-दो माह में ही सरलता से इससे छुटकारा पा सकता है।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com