कविता

कल्प- अल्प -विकल्प

तुम कल्प,
       अल्प और विकल्प मेरे……
तुम बिन एक कल्प गुजरा।
निसदिन मैं कितना अल्प गुजरा।।
तुम बिन एक कल्प गुजरा।
जिंदगी को…..
कैसा बिखरने से रोक लेता।
मुझपर…..
हंस -हंस के,
हर विकल्प गुजरा।
फिर भी ,
न-उम्मीद नही।
जो भी गुजरा।
कितना अल्प गुजरा।।
कल्प गुजरें।
जिंदगीयों की दस्तक।
बदलती रही।
मैंने जिसे सहेज रखा।
गीत वो,
कल्प -दर -कल्प गाती रही।
लेकिन रूह में,
जो अल्प तेरा विम्ब है।
वो अल्प होकर भी,
मेरे सहस्र कल्प  है।
प्रीति -असीमता का,
कहाँ कोई विकल्प है।
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com