गीत/नवगीत

मत रोको गंगा की धारा

मत रोको गंगा की धारा, अविरल बहने दो।
उर की सारी पीड़ा खुशियां, कल-कल कहने दो।
केवल नदी नहीं है गंगा, अपनी थाती है।
युग-युग से पुरखों की पढ़ती आई पाती है।
घाटों में इतिहास सुरक्षित, हलचल रहने दो।
संस्कृति की संवाहक गंगा, जीवन का राग भरे।
सृजन प्रलय के तटबंध बीच, बहती आग भरे।
सुरसरि है शुभ श्वास हमारी, कलरव करने दो।।
पोषण मुक्ति प्रदाता गंगा, जन विश्वास लिए।
उर भरती हैं उत्साह प्रबल, नव आकाश लिए।
वक्षस्थल पर वार मशीनी, अब मत सहने दो।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com