लघुकथा

लघुकथा – गृह-शान्ति का अचूक मंत्र

यूँ तो मीठालाल का परिवार कस्बे में अपनी अच्छाइयों के कारण जाना जाता है । स्वयं मीठा लाल धर्मप्राण व पुराने विचारों पर चलने वाला इंसान है । पर अचानक पिछले कुछ वर्षों से परिवार में अशांति रहने लगी थी । पिता-पुत्र, पति-पत्नी के बीच कलह रहने लगा । समझदारी के सबकुछ प्रयत्न करने पर भी, कलह थमने का नाम नहीं ले रहा था इस कारण वो कुछ अधिक परेशान रहने लगा था ।

एक दिन अपने मित्र की सलाह पर अमल करते हुए वह पास के शहर के ‘समस्या निराकरण केन्द्र’ पर गया । उसकी कल्पनाओं में केन्द्र कोई देवस्थान और उसका संचालन कर्ता कोई सयाना (भोपा) होगा पर वहाँ पहुँचने पर तो कुछ अलग ही पाया । बहुत ही सुन्दर व बड़ा भवन एक तरफ पूछताछ केन्द्र से जानकारी लेकर रजिस्ट्रेशन रसीद कटाई और अपने क्रम की प्रतीक्षा में वहाँ उपस्थित भीड़ में बैठ गया । करीब दो घंटे बाद नाम बुलने पर उसे एक हाल में जाने को कहा, वहाँ पहले से ही एक शूट बूट धारी महाशय पहले से ही बैठे हुए थे उन्होंने मुस्कराकर सामने कुर्सी पर बैठने को कहा । मीठालाल की भौचक्की आँखें दाँयें-वाँयें देख रही थी । तब ही मीठालाल ने सुना कि – बोलिये, आपकी क्या समस्या है ?
ये सुनकर मीठा लाल ने अपनी सारी समस्या बता दी। मीठा लाल की बातें सुनकर वो सज्जन बोले- देखिए, आपकी समस्या का हल हो सकता है पर आपको पच्चीस-तीस हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे, मैं आपको ‘गृह-शान्ति’ का एक ‘अचूक मंत्र’ बताता हूँ । ये सुनकर मीठा लाल को झटका सा लगा पर कुछ संभल कर बोला- वो कैसे और क्या वाकई समस्या का हल हो जायेगा? तो वो बोले- बिल्कुल हो जायेगा , केवल आपको अपनी पत्नी व बेटों को एन्ड्रोल्ड मोबाइल दिलाने होंगे फिर देखना घर की अशांति रफूचक्कर हो जायेगी । मीठा लाल ने वहाँ से निकलकर उसी शहर से तीन मोबाइल खरीदकर, पत्नी और बेटों में वितरित कर दिए । अब घर में कलह नहीं रहता, अब सब अपने-अपने मोबाइल में लगे रहते हैं । पर क्या ये जो परिवार में शान्ति दिखने लगी थी वो सचमुच की शान्ति थी या फिर शान्ति का एक भ्रम,,,, ये तो वक्त ही बताएगा । बिचारा मीठा लाल … पर हाँ, इस समय तो ये आजमाया हुआ उपाय कारगर लग रहा था … देखते हैं ।
— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201