पर्यावरण

पक्षियों का भी ध्यान रखना होगा

कई लोग बच्चों के सामने गाली, अपशब्दों का प्रयोग करते है। वे ये नही सोचते इसका असर बच्चों के अलावा पक्षियों पर भी होता है। कुछ पक्षी इंसानो की बोली की हूबहू बोली बोलने में माहिर होते ही वे वैसी ही नकल करते है। पक्षियों को पालने के शौकीनों को ये ध्यान रखना आवश्यक है कि घर में अपशब्दों का प्रयोग कदापि न करे। इसका प्रभाव तत्काल पक्षियों पर पड़ता है। वे उसी अनुसार मेहमानो के सामने अपशब्द बोलेंगे जिससे शर्मिंदा होना पड़ेगा। बच्चों के सामने व पक्षियों के सामने अपशब्दों के बोलने पर अंकुश लगाएं, ताकि परिवार में विकृति पैदा न हो। मेहमान के सामने शर्मिंदा न होना पड़े।

पर्यावरण की बात करें तो आसमान में मंडराते गिद्ध को देखते हुए अंदाजा ला सकता है की जमीन पर कोई मृत जानवर पड़ा होगा। उनकी पैनी निगाह उड़ते हुए जमीं पर पड़े मृत जानवर को पहचान लेती है। वर्तमान में गिद्ध दिखाई नहीं देते। ना दिखाई देना गिद्धों की कमी दर्शाता है। गिद्धों की रक्षा में हर व्यक्ति, संस्थाओं को सहयोग हेतु आगे आना होगा ताकि गिद्धों के संरक्षण एवं पर्यावरण स्वच्छता का लाभ के साथ गिद्धों की संख्या में वृद्धि होकर उनके आवासीय स्थल सुरक्षित हो सके। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है की गिद्धों की संख्या में कमी का कारण प्रदूषण, घटते जंगलो, विषैले पदार्थ खा लेने के चलते इनका जीवन प्रभावित हुआ है। पर्यावरण हितेषी गिद्ध धरती पर जहाँ संक्रमण को रोकते है वही स्वच्छता में हमारे सहयोगी रहे है। गिद्धों के हितो का ध्यान रखा जाए ताकि गिद्ध विलुप्ति की कगार पर ना पहुंचे।

पक्षियों के व्यवहार पर तनिक गौर करें तो पाएंगे कि पक्षी अपने मनपसंद और निर्धारित स्थानों पर आते है। पक्षियों के उडान भरने के अपने नियम होते है। कोई सीधी क़तार में तो कोई -‘वी’ आकार में उडान भरते है। तो कोई झुंड बनाकर उड़ते है। इन पक्षियों में कुछ पक्षी पानी में तैरना,गोता लगाना जानते है। ये पंखों की मदद से अपने समूहों की पहचान करते है। पक्षियों की श्रवण शक्ति, दॄष्टि तीव्र होती है। पक्षियों को वर्षा का बहुत ज्ञान होता है जैसे चिड़िया का धूल में स्नान धूल में लोट कर करना, चीलों का वृताकार होकर आकाश की और ऊँचा उड़ना भी वर्षा का सूचक होता है। ऋतु -संबंधी, वर्षा- संबंधी, मौसम -संबंधी,दिशा -संबंधी का ज्ञान होता है। कुछ लोग पक्षियों की चाल -ढाल देखकर भी मौसम का अनुमान लगा लेते है। तीतर के पंख जैसी लहरदार बदली आकाश में छाई हो तो वर्षा अवश्य होगी।

मादा पक्षी को खुश करने के लिए नर पक्षी उसके आगे नाचता, व तरह-तरह की आवाजें निकालता है। सघन जंगल और जल हेतु बढ़ी परियोजनाओं की सुविधाएँ तो है। किन्तु विलुप्त प्रजातियों के पक्षियों के लिए जो उपाय किये जा रहे है उनकी चाल धीमी है। लुप्तप्राय प्रजातियों को नियंत्रित परिस्थितियों में संरक्षित रखने हेतु केवल नैसर्गिक स्थान और वातावरण विश्वसनीय समाधान है। दुर्लभ और मरणोंन्मुख पक्षियों को सुरक्षित रखना एवं वंश वृद्धि की और ध्यान देने का लक्ष्य एवं कर्तव्य निश्चित करना होगा। साथ ही संरक्षित स्थानों को दूषित वातावरण से मुक्त रखना होगा। अवैध शिकार करने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी सुनिश्चित करना होगी। जिससे पक्षियों में वृद्धि दिखाई देकर लुप्तप्राय प्रजाति को बचाया जा सके।

— संजय वर्मा ‘दृष्टि’

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच