कविता

दीपों का त्योहार

जगर – मगर दीपों का आया त्योहार।
हँसी – खुशी का लाया, अनुपम उपहार।
चमक – दमक, चहल-पहल, कोई न अकेले
बिजली सजावट के जुड़े हुए हैं मेले
झिलमिल सितारों – से, सजे घर – द्वार।
सनसनाते राकेट, फट – फट, पटाखे
फुर – फुर फुलझड़ी, धूम-धाम धड़ाके
चमाचम महताब, सुर – सुर अनार ।
लुभा रहे मिट्टी के, मोहक खिलौने
लक्ष्मी – गणेश, राधा-कृष्ण, मृगछौने
रेवड़ी, मिठाई, खील के लगे अंबार।
जगर – मगर दीपों का आया त्योहार।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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