नेता
नेता विकट कहानी है |
करता बस मनमानी है |
गरिमा को रख ताख तले
अपनी धाक जमानी है |
बे पेंदे का लोटा ये –
आँखो में ना पानी है |
अंधा गूंगा है बहरा –
कोई ना इसका सानी है |
कुर्सी का सब खेल यहाँ –
लोकतंत्र बेमानी है |
साम दाम अपना कर के –
बस सत्ता हथियानी है |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”