कविता

बाल श्रम

एक अभिशाप है
समाज में बाल मजदूरी।
बच्चों की जिंदगी रह
जाती इससे अधूरी।।
जब पढ़ने जाने की उम्र में
बच्चों ने यह काम किया।
सोनू, मोनू, बंटी मुन्ना तो
छोटू किसी ने नाम दिया।।
रद्दी बुनते, कपड़ा बुनते तो
कहीं चाय की दुकान पर।
बच्चे काम करते मिल
जाएंगे फैक्ट्री मकान पर।।
गैरकानूनी काम है जो मालिक
या अभिभावक कराते हैं।
कुछ पैसों के खातिर बच्चों का
जीवन खराब कर जाते हैं।।
शारीरिक या मानसिक श्रम
जो बच्चों से करायेगा।
पचास हजार का जुर्माना लगेगा
तीन साल को जेल जाएगा।
रुक जाता है उनका विकास
जब बच्चे काम करते हैं।
संवर जाता है उनका जीवन
यदि शिक्षा पूरी करते हैं।।
नन्हे-मुन्ने इन बच्चों को
पढ़ने दो स्कूल में।
अपने थोड़े स्वार्थ के खातिर
मत झोको बाल श्रम की धूल में।।

— शहनाज़ बानो

शहनाज़ बानो

वरिष्ठ शिक्षिका व कवयित्री, स0अ0,उच्च प्रा0वि0-भौंरी, चित्रकूट-उ० प्र०