बाल कहानी

इबादत

अक्सर इबादत अपने इष्टदेव की ही की जाती है. नरेंद्र ने किसकी इबादत की!
छोटा-सा बालक नरेंद्र पार्क में सी-सॉ झूला झूलने गया था. सी-सॉ झूला झूलने के लिए उसे किसी साथी की जरूरत थी, पर कोई मिल नहीं रहा था. अकेले कैसे सी-सॉ झूला झूलता वह!
”कोई नहीं आ रहा मेरे साथ सी-सॉ झूला झूलने!” नरेंद्र सोचने लग गया.
”सी-सॉ झूला झूलना तो जरूर है, कुछ तो करना पड़ेगा!” उसके दृढ़ संकल्पित मन ने ठान लिया था.
”उसे प्यासे कौए की कहानी याद आ गई. घड़े में पानी बहुत थोड़ा था. उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुंच पा रही थी. उसने कुछ कंकड़-पत्थर——”
”पत्थर! हां-हां पत्थर से मेरी भी बात बन सकती है.” उसके मन में विचार कौंधा!
इधर-उधर नजर दौड़ाकर उसने देखा, एक बड़ा-सा पत्थर दिख ही गया.
किसी तरह उसने सी-सॉ झूले के एक तरफ पत्थर रखा, उसका झूला तैयार था.
”अहा! कितना मजा आ रहा है!” झूला झूलते हुए उसकी प्रसन्नता मुखर हो रही थी.
”मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है…
किसी फकीर से सुना था मुझमें भी खुदा रहता है..” पार्क में कोई अपने साथियों को सुना रहा था.
नरेंद्र ने भी अपनी इबादत खुद ही कर ली थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “इबादत

  • *लीला तिवानी

    इस लघुकथा पर हमारे एक पाठक सुदर्शन खन्ना की प्रतिक्रिया-
    हम ने रोती हुई आँखों को हँसाया है सदा, इस से बेहतर इबादत तो नहीं होगी हमसे’. ‘इबादत’ एक प्रकार से हौसला है परिस्थितियों से हार न मानने का. नरेंद्र ने हार नहीं मानी और परिस्थिति को अपने पक्ष में कर दिखाया जिसे आपने ‘इबादत’ की संज्ञा दी. बहुत खूब. इस ‘इबादत’ की बना लो आदत, खुदा की हो जाएगी इबादत.

  • डाॅ विजय कुमार सिंघल

    बहिन जी, इबादत की जगह पूजा और खुदा की जगह ईश्वर शब्द का उपयोग भी किया जा सकता है। उर्दू शब्दों को जबर्दस्ती डालना क्या अच्छी बात है?

  • *लीला तिवानी

    एक वह भी नरेंद्र था, जिसने खुद की इबादत की और विवेकानंद बन गए! विवेक से आनंद पाया और दुनिया को भी विवेक से आनंद पाने की राह दिखाई. उनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था.

    • *लीला तिवानी

      विजय भाई, आपकी बात से हम शत-प्रतिशत सहमत हैं, लेकिन उर्दू में कुछ शब्द इअतने नफासत और नजाकत वाले होते हैं, जिनसे रचना की खूबसूरती बढ़ जाती है. फिर हमें तो पार्क में बोली गई बात से ही कोई शब्द लेना था, उसमें इबादत शब्द ही आया है-
      ”मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है…
      किसी फकीर से सुना था मुझमें भी खुदा रहता है..”
      इसके अतिरिक्त अनेक भाषाओं के शब्दों को जज़्ब कर लेना हिंदी भाषा की प्रमुख विशेषता ही है. अब देखिए न इसी प्रतिक्रिया में कितने उर्दू शब्द आ गए हैं- नज़ाकत, नफासत, जज़्ब आदि. जज़्ब के लिए समाहित शब्द भी प्रयोग में लाया जा सकता है, लेकिन वह बात नहीं होती, जो जज़्ब में है. भविष्य के लिए सचेत करने वाली आपकी मार्गदर्शक प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

Comments are closed.