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सींग

अक्सर किसी व्यक्ति के मूर्खतापूर्ण कार्य करने पर कहा जाता है- ”गधे के सिर पर सींग नहीं होते.”
आप समझ ही गए होंगे, कि व्यक्ति को अपरोक्ष रूप से क्या कहा गया है!
अब गधे के या मूर्ख व्यक्ति के सींग होते हैं या नहीं, पर ये सींग होते बड़े काम के हैं.
अब देखिए न! आठ शेर मिलकर एक भैंसे को निपटाने वाले थे. कोई उसके ऊपर चढ़ गया, कोई पीछे से वार कर रहा है, कोई आगे से तो कोई पीछे से. बिचारा भैंसा बुरी तरह घिर गया. घिर तो गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी. बड़े साहस से अपने सींगों से मुकाबला कर रहा था. लग रहा था, अभी गया कि गया. चंद सेकंड में माहौल पूरी तरह से बदल जाता है और शेर दुम दबाकर भाग खड़े हुए. दरअसल, भैंसे के अन्य साथी तेजी से दौड़ते हुए आते हैं और अपने सींगों से शेरों के झुंड को वहां से भागने पर मजबूर कर देते हैं. देखा सींगों से शेर भी खदेड़े जा सकते हैं.
खुरवाले कुछ पशुओं के सिर के दोनों ओर शाखा के समान निकले हुए कड़े नुकीले अवयव जिनसे वे आक्रमण भी करते हैं और अपना बचाव भी. गाय के सींग, हिरन के सींग, भैंस के सींग आदि.
सींग एक पशु अंग है. यह गाय, बैल, भैंस, हिरण, गैंडा आदि जानवरों के मस्तक पर स्थित रहता है. सींग कई प्रकार के होते है और उनकी संयोजना भी भिन्न भिन्न उपादानों की होती है. गांय, भैंस आदि के पोले सींग ही असली सींग हैं, जो अंडधातु और चूने आदि से संघटित तंतुओं के योग से बने होते हैं और बराबर रहते हैं. बारहसिंगों के सींग हड्डी के होते हैं और हर साल गिरते और नए निकलते हैं.
सींग पर कुछ मुहावरे-
सींग कटाकर बछडों में मिलना = बूढ़े होकर बच्चों में मिलना, किसी सयाने का बच्चों का साथ देना.
सींग दिखाना = अँगूठा दिखाना, कोई वस्तु न देना और चिढ़ाना
सींग निकलना = चौपाए का जवान होना, इतराना, पागलपन करना, सनकना.
सींग पर मारना = कुछ न समझना, तुच्छ समझना, कुछ परवा न करना. सींग पूँछ गिराना = निरीह या दीन होना, अति नम्रता दिखाना, परास्त होना. (कहीं) सींग समाना = कहीं ठिकाना मिलना, शरण मिलना, जैसे,—जहाँ कहीं सींग समाएगी वहाँ.
(किसी के सिर पर) सींग होना = कोई विशेषता होना, कोई खसूसियत होना, औरों से बढ़कर कोई बात होना (व्यंग्य).
सिंगी= सींग का बना एक बाजा जो फूँककर बजाया जाता है . जैसे
‘सींग बजावत देखि सुकवि मेरे दृग अँटके ‘

एक सीख गाय की तरफ से, सींग का एक प्रेरणादायक किस्सा-
गजब! गाय ने सींग से खोला नल, पानी पीया और फिर उसे बंद भी कर दिया
”ये हुई न बात! पानी पीने के लिए है, व्यर्थ बहाने के लिए नहीं.” गाय ने करके दिखाया और हमें सिखाया.
सींग के बारे में आज इतना ही, शेष फिर कभी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244