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लघुकथाओं के शिल्प पर ऑनलाइन परिचर्चा

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में म.प्र. के साहित्यकार प्रो(डॉ).शरद नारायण खरे ने कहा कि ” लघुकथा को कालदोष से बचाया जाना चाहिए,पर बहुत बार कथ्य के कारण लघुकथा में यह दोष आ ही जाता है।या फिर लघुकथा का ताना-बाना ही ऐसा होता है कि चाहकर भी उसे कालदोष से नहीं बचाया जा सकता। बहुत बार अच्छी व लोकप्रिय  लघुकथाएं इस दोष से परिपूर्ण होती हैं,तो भी उनकी बहुत सराहना होती है।जब लघुकथा में कालदोष की बात आती है तब कई मुख्यधारा के लघुकथाकार, अपने ही द्वारा बनाए गए सिद्धांतों पर खरे नहीं उतर पाते ! इसलिए लघुकथा में कालदोष पर चर्चा समय की मांग है!”
                   भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में आयोजित” गूगल मीट “और फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर ऑनलाइन आयोजित” हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन ”  के संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में ” लघुकथा में काल दोष कब तक ? ” विषय का प्रवर्तन करते हए उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए ! उन्होंने कहा कि ” बहुत जरूरी हो तो हम एक -दो  पुरानी घटनाओं को फ्लैशबैक के माध्यम से अवश्य प्रस्तुत कर सकते हैं ! किंतु ऐसा आभास बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि हम लघुकथा के नाम पर कहानी का प्लॉट उतार रहे हैं ! हम कहानी को छोटा कर लघुकथा नहीं बना सकते ! और यहीं पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि  लघुकथा कहानी का छोटा रूप नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप है lइसके साथ कई घटनाएं एक साथ जुड़ी नहीं होतीं l “
       लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि बरेली के शराफत अली खान ने डॉ. सतीश राज पुष्करणा के विचार को व्यक्त करते हुए कहा कि ” फालतूपन से लघुकथा प्राय: बोझिलता  का शिकार हो जाती है ।अतः इससे बचना चाहिए। फालतूपन के कारण ही कालत्व दोष उत्पन्न होता है और कालत्व दोष लघुकथा का एक बड़ा दोष है, जो लघुकथा को कहानी होने का एहसास कराने लगता है l काल के अंतराल में घटित कई स्थितियां लघुकथा में आती हैं, तो इसे कालदोष कहते हैं l”
            डॉ. पुष्पा जमुआर ने कहा कि  ” जीवन में कोई भी कार्य करना हो, तो बिना तैयारी किये सफलता सदैव संदिग्ध रहती है ।लघुकथा भी इस स्वभाविक नियम का अपवाद नहीं है । लघुकथा एक लघु आकारीय विधा है। यानी बिना किसी फालतूपन के कम से कम शब्दों में क्षिप्रता एवं त्वरा का समुचित सहारा लेकर प्रतीकात्मक यानी सांकेतिक भाषा का उपयोग करना चाहिए, ताकि कालदोष  से बचा जा सके !”
             विभा रानी श्रीवास्तव ने  सिद्धेश्वर के विचार को स्वीकार करते हुए कहा कि अगर हम लघुकथा के प्रति समर्पित हैं, तो उसके दिशा निर्देश और  अनुशासन को मानने के प्रति भी प्रतिबद्धता रखनी चहिए !”
           मीना कुमारी परिहार ने कहा कि ” लघुकथा एक ही कालखंड यानि एक ही क्षण में यथार्थ के धरातल पर घटित घटना के जरिए कथ्य को कहने की विधा है। ऐसे में जब दो या दो से अधिक कालखंड को पकड़कर कथ्य कहने कोशिश की जाती है, तो कालखंड दोष आ जाता है,  जिससे बचना चाहिए !”
                ऑनलाइन गूगल मीट पर आयोजित ” हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन ” में  मधुरेश नारायण ने “काम और आराम “, डॉ.पुष्पा जमुआर ने ” छाते की ओर “, विभा रानी श्रीवास्तव ने ” धर्म नीति “, डॉ. शरद नारायण खरे ने ” यादें  “,  राज प्रिया रानी ने ” दानव का रूप “,ऋचा वर्मा ने ” पेंशन “, सिद्धेश्वर ने ” एक बेटे की कीमत “, अलका वर्मा ने ” बड़ा मकान “,  मीना कुमारी परिहार ने ” अंगूठी में नगीना “,  शराफत अली खान ने ” प्यार ” शीर्षक से अपनी-अपनी  प्रतिनिधि लघुकथाओं का पाठ कर इस लघुकथा सम्मेलन को  यादगार  बना  दिया !
                 इनके अतिरिक्त डॉ राम नारायण यादव, संजय रॉय, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, संतोष मालवीय,, अनिरुद्ध झा दिवाकर, पूनम कतरियार,  दुर्गेश मोहन, अभिषेक कुमार श्रीवास्तव की भी भागीदारी रही !
— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com