कविता

प्रकृति का हर रंग निराला है

प्रकृति का हर रंग निराला है
जिसने इनका आनंद लिया
वह सचमुच किस्मतवाला है.

नभ में है सूरज का वास
देता है जो ताप-उजास
स्वास्थ्य का अनमोल ख़जाना
कीटों का करता है नाश.
नभ में चंदा भी रहता है
देता चांदी-सी चंदनिया का निखार
बरसाता मधुरस और शीतलता
रोशनी ले सूरज से उधार.
नभ में ही तारों का जाल
दिखलाता नभ कितना विशाल
अपनी टिमटिमाहट से खुश होकर
राही को करता खुशहाल.

थल में पर्वत-झरने-उपवन
पंख-पखेरू और खदानें
जाने क्या-क्या भू के गर्भ में
केवल एक विधाता जानें.

जल में नदियां-ताल-तलैया
सागर-महासागर देते ताल
इनके बिन जग सूना होता
इनकी महिमा अपरम्पार.

वायु लाती है बहारें
बादल बरखा लाते हैं
फूलों से महके जग-अंगना
खग जग को चहकाते हैं

वृक्ष न काटें, पानी बचाएं
बचत का अभियान चलाएं
सबको एक समान समझकर
जीवन को उत्सव-सा सजाएं.

प्रकृति का हर रंग निराला है
जिसने इनका आनंद लिया
वह सचमुच किस्मतवाला है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244