उपन्यास अंश

लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 29)

अपने निकट सम्बंधी पांडवों के आग में जलकर मर जाने का समाचार शीघ्र ही द्वारिका में भी पहुँच गया। महारानी कुंती यादव प्रमुख वसुदेव की बहिन थीं। अतः सभी पांडवों के साथ उनका गहरा लगाव था। इसलिए यह दुःखद समाचार मिलते ही वसुदेव अपने दोनों पुत्रों बलराम और कृष्ण के साथ शोक प्रकट करने के लिए हस्तिनापुर आये।

धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर आदि सभी से मिलकर उन्होंने शोक प्रकट किया और दुर्घटना की जानकारी ली। उनको बताया गया कि शिव पूजन के उत्सव में भाग लेने के लिए सभी पांडव अपनी माता के साथ गये थे और वहाँ उन्हें एक सुन्दर नवनिर्मित भवन में ठहराया गया था। वे वहाँ आनन्दपूर्वक रह रहे थे और कुछ दिनों बाद ही लौटने वाले थे। त्रयोदशी के दिन कुंती ने ब्राह्मणों और निर्धनों को भोजन भी कराया था और फिर वे सामान्य दिनों की तरह शयन करने चले गये थे। लेकिन ऐसा लगता है कि भोजन पकाने के लिए जो भट्टियाँ जलायी गयी थीं, उनमें से कोई भट्टी अच्छी तरह नहीं बुझी होगी और उससे निकली किसी चिनगारी ने भवन को जला दिया होगा।

इस विवरण से वसुदेव सहित किसी को संतुष्टि नहीं हुई, परन्तु वे सीधे तो यह नहीं कह सकते थे कि यह दुर्घटना नहीं, षड्यंत्र था, लेकिन कई बातों पर उन्होंने प्रश्न भी उठाये। धृतराष्ट्र आदि ने उनके गोल-मोल उत्तर दिये। इससे कृष्ण को सन्देह हुआ कि कुछ न कुछ दाल में काला है, किन्तु उन्होंने अपना सन्देह वहाँ प्रकट नहीं किया। वे गुप्त रूप से सत्य का पता लगाना चाहते थे। उन्होंने जानना चाहा कि क्या इस दुर्घटना की जाँच करायी गयी है, तो विदुर ने बताया कि जाँच अधिकारी ने वहाँ जाकर पूरी जाँच की है और इस बात की पुष्टि की है कि यह एक दुर्घटना मात्र थी। कृष्ण को इस उत्तर में भी लीपापोती की गन्ध आयी, क्योंकि ऐसी भयंकर दुर्घटना की जाँच इस तरह शीघ्रता से नहीं की जा सकती। इसके लिए अनेक पक्षों पर विचार और पड़ताल करनी पड़ती है।

अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से कृष्ण ने यह भी भाँप लिया कि धृतराष्ट्र, दुर्योधन आदि को पांडवों की मृत्यु का कोई शोक नहीं है, वरन् वे शोक प्रकट करने का नाटक ही कर रहे हैं। वे यह जानते थे कि धृतराष्ट्र और उनके सभी पुत्र प्रारम्भ से ही पांडवों के प्रति द्वेष रखते थे और उन्हें अपने शत्रुओं के मर जाने पर प्रसन्न ही होना चाहिए। लेकिन उनके मुख पर अपने शत्रुओं के मारे जाने की जो प्रसन्नता होनी चाहिए थी, वह भी नहीं थी। इससे कृष्ण को सन्देह हुआ कि यह एक षड्यंत्र हो सकता है, जिससे बचकर पांडव निकल गये हैं। सन्देह का एक कारण तो पूरी तरह स्पष्ट था कि जले हुए भवन में जो कंकाल पाये गये थे उनमें से एक भी भीम के आकार का नहीं था। ऐसा तो हो नहीं सकता कि जलने पर किसी के शरीर का आकार छोटा हो जाये। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि मरने वालों में कम से कम भीम शामिल नहीं थे।

परन्तु वे अपना संदेह कैसे और किसके सामने प्रकट करें? वे जाँच अधिकारी को बुलाकर तो बात कर नहीं सकते थे, उनको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था और न वे धृतराष्ट्र द्वारा करायी गयी जाँच पर सन्देह कर सकते थे। तभी उनका ध्यान महामंत्री विदुर की ओर गया। हाव-भाव से वे न तो दुःखी लग रहे थे और न प्रसन्न लग रहे थे। वे पूर्णतः उदासीन भाव से वार्तालाप कर रहे थे। इससे कृष्ण को लगा कि विदुर अपने मन में कोई बड़ा रहस्य छिपाये हुए हैं। अतः कृष्ण ने उनसे एकान्त में वार्ता करना उचित समझा।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com