कविता

चांद

ऐ चांद तुझे
देखने का हक
नहीं मुझे फिर भी
तुम आना
चुपके-चुपके दबे पाँव
मेरी देहरी पर
करूँगी इन्तजार तेरा
कुछ खट्टी कुछ मीठी सी
यादों को भरे संदूक से
निकालकर
चुपके से ओढ़ लूंगी
बादलों से निकलकर
तारों के संग
खिड़की की दरारों से
पुकारना मुझे
आऊंगी मिलने छत पर
अक्षत रोली से सजे है
अरमानों की थाल मेरी
बस!बादलों से
एक बूंद नीर
संग लेते आना
मैं तूझे पीपल की
तरह पूजूंगी ऐ चांद
करूंगी इंतजार तेरा
जरूर आना।
— लता नायर

लता नायर

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका सरगुजा-छ०ग०