उपन्यास अंश

लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 30 अन्तिम)

अवसर पाते ही उन्होंने विदुर से एकान्त वार्ता करने की इच्छा प्रकट की। विदुर भी सोच रहे थे कि यदि पांडवों का कोई सच्चा मित्र और सहायक हो सकता है, तो वे यही वासुदेव कृष्ण हो सकते हैं, भले ही उस समय तक कृष्ण अपने फुफेरे भाइयों से मिले भी नहीं थे। यह सोचकर विदुर जी उन्हें अपने निवास पर ले गये। विदुर पत्नी पारंसवी कृष्ण के प्रति बहुत श्रद्धा रखती थीं, क्योंकि उन्होंने कृष्ण के विलक्षण कार्यों के बारे में बहुत सुना था। उन्होंने कृष्ण का आवश्यक सत्कार किया।
सत्कार के बाद विदुर ने अपने कक्ष में कृष्ण को ले जाकर पूछा कि वे क्या वार्ता करना चाहते हैं?

कृष्ण ने उनसे अपना सन्देह प्रकट किया- ”महामंत्री! मुझे इस दुर्घटना पर सन्देह है। यह अग्नि स्वाभाविक रूप से लगी हुई नहीं हो सकती, क्योंकि नया बना हुआ महल इतनी सरलता से जल जाये कि आग बुझाने का भी अवसर न मिले, यह आश्चर्यजनक है। ऐसा लगता है कि महल में अत्यन्त ज्वलनशील पदार्थ लगाये गये होंगे। ऐसा किसी योजना के अनुसार किया गया हो सकता है।“

यह कहकर वे रुके और विदुर पर अपने कथन के प्रभाव का आकलन किया। जब विदुर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, तो कृष्ण ने आगे कहा- ”महामंत्री! एक उत्सव के लिए सभी पांडवों को उनकी माता सहित वारणावत भेजना भी सन्देह उत्पन्न करता है। लगता है कि उनको किसी भयंकर योजना के अन्तर्गत वहाँ जाने और नये भवन में रहने के लिए बाध्य किया गया होगा।“

यह कहकर उन्होंने एक तीक्ष्ण दृष्टि विदुर की ओर डाली। विदुर के मन में एक झंझावात चल रहा था कि कृष्ण को सत्य से अवगत कराया जाये या नहीं। फिर उन्होंने निर्णय किया कि यही उचित होगा। इसलिए वे बोले- ”यह सत्य है कि महाराज धृतराष्ट्र ने उन सभी को वारणावत जाने का स्पष्ट आदेश दिया था, यद्यपि वे इस आदेश से प्रसन्न नहीं थे। वह महल भी दुर्योधन के मंत्री पुरोचन की देख-रेख में बनवाया गया था और उसमें बहुत मात्रा में अत्यन्त ज्वलनशील वस्तुओं का उपयोग किया गया था, जिससे वह भवन बहुत कम समय में ही जलकर राख हो गया।“

विदुर के इस कथन से कृष्ण का यह सन्देह पुष्ट हो गया कि यह पांडवों को समाप्त करने का दुर्योधन आदि का षड्यन्त्र था, जिसमें महाराज धृतराष्ट्र भी पूरी तरह लिप्त थे।

कुछ सोचकर कृष्ण ने आगे कहा- ”महामंत्री! मुझे संदेह है कि इस आग में पांडव जल गये होंगे, क्योंकि वहाँ जो जले हुए शव मिले थे, उनमें से कोई भी भीम के आकार का नहीं था। यह तो असम्भव है कि जलने से किसी शरीर का आकार छोटा हो जाये। कहीं ऐसा तो नहीं है कि पांडवों को किसी तरह इस षड्यंत्र का पता चल गया हो और वे स्वयं आग लगाकर निकल भागे हों?“

यह सुनकर विदुर समझ गये कि अब कृष्ण से कुछ भी छिपाना उचित नहीं होगा। इसलिए उन्होंने कृष्ण को सत्य बताना उचित समझा। धीमे स्वरों में वे बोले- “आपका अनुमान सत्य है वासुदेव! मुझे इस षड्यंत्र की भनक लग गयी थी, मैंने युवराज युधिष्ठिर को कूट भाषा में इस बारे में सावधान कर दिया था और सुरंग खोदने के लिए एक विश्वासपात्र खनिक भी भेज दिया था। वह खनिक अपना कार्य करके वापस आ गया है। निश्चय ही पांडव भवन में आग लगाकर उसी सुरंग से निकल भागे हैं। पुरोचन ने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी, इसलिए वह भी जलकर मर गया है।“

यह सुनकर कृष्ण की प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। जिज्ञासावश वे पूछ बैठे- ”इस समय पांडव कहाँ हो सकते हैं, महामंत्री?“
”मैंने उनको गंगा नदी पार करके राक्षसों के क्षेत्र तक पहुँचाने की व्यवस्था कर दी थी, वासुदेव! वे उसी क्षेत्र में कहीं सुरक्षित होंगे।“ यह सुनकर कृष्ण ने संतोष की साँस ली। उनको इस बात की भी बहुत प्रसन्नता थी कि हस्तिनापुर में महामंत्री विदुर के रूप में उनका एक सच्चा हितैषी है। भीष्म पर उन्हें इतना विश्वास नहीं था।

विदुर ने आगे कहा- “वासुदेव! अभी तक मैंने आपके अलावा किसी को भी यह रहस्य नहीं बताया है कि पांडव जीवित हैं। मैं केवल भगवान वेदव्यास को यह रहस्य बताऊँगा, ताकि आवश्यक होने पर उनके माध्यम से पांडवों को कोई संदेश भेजा जा सके। वेदव्यास जी राक्षसों के क्षेत्र में निडर होकर आते-जाते रहते हैं।“

कृष्ण ने कहा- ”मैं भी इस रहस्य को गुप्त ही रखूँगा, महामन्त्री। उचित समय पर पांडवों को प्रकट कराने का प्रयास भी मैं करूँगा। आप मेरी ओर से निश्चिन्त रहिए।“

इस वार्ता के बाद कृष्ण विदुर के निवास से चले आये और फिर शीघ्र ही अपने परिजनों के साथ द्वारिका को प्रस्थान कर गये।

(समाप्त)

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com