धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

दीवाली से जुड़े रोचक एवं ऐतिहासिक तथ्य

दीवाली पर्व हिन्दू समुदाय में तो विशेष रूप से लोकप्रिय है ही, अन्य समुदायों में भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं है। इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते रहे हैं कि दीवाली का त्यौहार ईसा पूर्व के बहुत पहले से ही मनाया जाता रहा है। पुरातत्वविदों को मिले करीब 500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के अवशेषों में मिट्टी की ऐसी मूर्तियां मिली हैं, जिनमें मातृ देवी के दोनों ओर दीप प्रज्जवलित होते दर्शाए गए हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि उस दौरान भी दीपोत्सव मनाया जाता था और देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता था। जैन धर्म ग्रंथों में भी दीपावली पर्व मनाए जाने का उल्लेख मिलता है लेकिन जैन धर्म में इसका उल्लेख भगवान श्रीराम द्वारा 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में नहीं बल्कि भगवान महावीर के निर्वाण के साथ ही सदा के लिए बुझ गई अंतजर््योति की क्षतिपूर्ति के लिए दीप जलाने का उल्लेख मिलता है। बहरहाल, यह पर्व मनाए जाने के पीछे चाहे जो भी परम्पराएं एवं मान्यताएं विद्यमान हों, आज यह पर्व एक खास समुदाय का नहीं वरन् समूचे राष्ट्र का पर्व बन गया है। इस पर्व से जुड़े ऐसे कई रोचक तथ्य हैं, जिन्होंने इसकी महत्ता को और भी बढ़ाया है।
– दीपावली पर्व का विशेष संबंध उस घटना से माना जाता है, जब भगवान श्रीराम रावण पर विजय हासिल कर 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे और अयोध्या वासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था।
– भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली से एक दिन पूर्व नरकासुर नामक अत्याचारी राजा का वध किया था और उस दुष्ट से छुटकारा पाने की खुशी में गोकुलवासियों ने अगले दिन अमावस्या के दिन दीप जलाकर खुशियां मनाई थी।
– जब मां दुर्गा ने दुष्ट राक्षसों का संहार करने के लिए महाकाली का रूप धारण किया और राक्षसों का संहार करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो महाविनाश को रोकने के लिए भगवान शिव महाकाली के चरणों में लेट गए तथा भगवान शिव के स्पर्श मात्र से ही महाकाली का क्रोध शांत हो गया। महाकाली के इस शांत रूप ‘लक्ष्मी’ की पूजा की गई। कहा जाता है कि तभी से दीवाली के दिन महाकाली के शांत रूप ‘लक्ष्मी जी’ की पूजा की जाने लगी। इस दिन लक्ष्मी जी के साथ इनके रौद्ररूप ‘महाकाली’ की भी पूजा की जाती है।
– महाबली और महादानवीर सम्राट बलि ने जब अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया तो देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और तब विष्णु ने वामन अवतार लेकर एक वामन के रूप में बलि से सिर्फ तीन गज भूमि दान में मांगी। हालांकि दानवीर बलि ने वामन का वेश धरे भगवान विष्णु को पहचान लिया था लेकिन फिर भी वामन वेश में अपने द्वार पर पधारे भगवान विष्णु को उसने निराश नहीं किया और उन्हें तीन पग भूमि दे दी। तब भगवान विष्णु ने अपने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया लेकिन बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर पाताल लोक बलि को ही सौंप दिया और उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी याद में पृथ्वीवासी हर दिन हर वर्ष दीवाली मनाएंगे।
– सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीवाली के दिन ही हुआ था और उस अवसर पर दीप जलाकर खुशियां मनाई गई थी।
– स्वामी रामतीर्थ का जन्म तथा निर्वाण दीवाली के ही दिन हुआ था। उन्होंने इसी दिन गंगा नदी के तट पर अपना शरीर त्याग दिया था।
– भगवान महावीर ने भी दीवाली के दिन पावापुरी (बिहार) में अपना शरीर त्याग दिया था।
– आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी इसी दिन अपनी काया का त्याग किया था।
– गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने करीब 2500 वर्ष पूर्व उनके स्वागत में हजारों दीप प्रज्जवलित कर दीवाली मनाई थी।
– अमृतसर के ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीवाली के ही दिन शुरू हुआ था।

— योगेश कुमार गोयल

योगेश कुमार गोयल

वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार तथा ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’, ‘जीव जंतुओं का अनोखा संसार’ इत्यादि कुछ चर्चित पुस्तकों के लेखक हैं और 31 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं। सम्पर्क: 114, गली नं. 6, वेस्ट गोपाल नगर, एम. डी. मार्ग, नजफगढ़, नई दिल्ली-110043. फोन: 9416740584, 9034304041 ई मेल: mediacaregroup@gmail.com