कविता

वक्त

वक्त तुझे देखा नजदीक से मैंने
तेरे साथ बिताए कई बरस मैंने।
कभी तू हल्का था कभी भारी
कभी तो होती थी निशा भी कारीl
हर रंग तेरे देखें तू साथ रहा मेरे
सपनों में मेरे अपनों में भी मेरेl
तू चलता रहा मैं भी चलती रही
दर्द की झलकियां चलचित्र सी
चलती रही कभी तनहाइयां
आकर रुलाती रही कभी
खुशियां आकर गले लगाती रही।
खुशियों के मेले थे राग सब तेरे थे
दर्द के रेले थे पर छांव तले तेरे थे।
हिम्मत न हारी अंतर्द्वंद थे भारी
लक्ष्य था पाना वेदना को मिटाना।
तेरे साथ मेरी दौड़ में छूटते गये
टूटते गये आज भी खुशी है
फिर भी आंखों में कुछ नमी है।
एक बात सिखाया हमें तुमने
वक्त हो  माटी का या फिर
हो सोना मुश्किल में हो गर
खुद पे भरोसा रखना।
वक्त तुझे देखा नजदीक से
देखा मैंने तेरे साथ बिताए
कई बरस मैने।
— वंदना यादव

वंदना यादव

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका,चित्रकूट-उत्तर प्रदेश