सामाजिक

कृतज्ञता का मनोभाव

कृतज्ञता एक मनोवैज्ञानिक भाव है ,जिसका संबंध सीधे दिल से जुड़ा होता है। मगर कृतज्ञता को व्यक्त करने का सबका अपना तरीका है। सिर्फ़ मानव ही नहीं, पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े सहित संसार के जीवित प्राणियों में यह भाव देखा जा सकता है,महसूस किया जा सकता है।
कृतज्ञता ज्ञापन का कोई गणितीय सूत्र नहीं है।परंतु हम सब कृतज्ञता व्यक्त कर संबंधित के प्रति नतमस्तक होते हैं, सम्मान करते हैं,धन्यवाद करते है।
हम इस संसार में आये, मां ने हमें जन्म दिया, पिता ने परवरिश की, परिवार/समाज से संस्कार मिला।प्रकृति ने जीने के लिए जल, वायु ,प्रकाश और हमारी जरुरतों का इंतजाम किया। विविधता भरे मौसम ने हमारी खाद्य सामग्रियों के उत्पादन में अपनी भूमिका निभाई।शिक्षक ने शिक्षा दी, गुरू ने जीवन का यथार्थ बोध कराया। चिकित्सक ने इलाज किया, सफाई करने वाले ने सफाई की,आदि आदि।
हमारे जीवन के हर हिस्से में बहुत से लोगों की भागीदारी से ही हमारा जीवन गतिशील हो पाता है।
ऐसे में हमारा दायित्व ही नहीं धर्म भी है कि हम हर किसी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें, कृतज्ञता ज्ञापित करें। यदि हम ऐसा करते हैं और इसे जीवन में उतार लेते हैं, तो न केवल हमारा जीवन खुशहाल हो सकता है,बल्कि आत्मिक खुशी का अहसास भी होगा।
संक्षेप में कृतज्ञता को औपचारिकताओं की परिधि से बाहर निकल कर महसूस कीजिये, आपको स्वतः ही कृतज्ञता और उसके मनोभावों का सुखद अहसास जीवन भर महसूस होता रहेगा। ऐसे में आपका जीवन सुखमय और सरल बनने से कोई नहीं रोक सकता।

*सुधीर श्रीवास्तव

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