कविता

कविता

बिना कष्ट के कोई
कहां निखरता है
तप तप कर ही सोना
आभूषण बनता है ।।

गिरना, उठना और संभलना
असफलताओं से सबक सीखना
मंजिल तक का सफर
तय किया करता है
तपतप कर ही सोना
आभूषण बनता है ।।

अथक प्रयास से मिली सफलता कर्मफलों को मिली मान्यता
नव- उत्साह ह्रदय में
संचारित करता है
तपतप कर ही सोना
आभूषण बनता है ।।

इच्छाशक्ति के बलबूते
राग-द्वेष को दूर छोड़ के
जो चाहो, वह सब
हासिल हो सकता है
‌ तपतप कर ही सोना
आभूषण बनता है ।।

— नवल अग्रवाल 

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई