कहानी

टिम्मू

ज्यों ही गाड़ी से उतरी, पाँव ज़मीन पर धरते ही देखा,गाड़ी के एकदम आगे स्याह श्यामल रंग का एक कुत्ता आशान्वित दृष्टि से निहार रहा है | एकदम वैसा ही स्नेह,वैसी ही सूरत, एक पल को तो ठहर सी गई मेरी नज़र अपलक उसकी आँखों में | लगा जैसे अपने बचपन में हूँ |

उसे छूना चाहा कि तभी एक स्वर ने मेरी धड़कनों को तेज़ कर दिया !!

“टॉम तुम यहाँ कैसे आए ? मैंने सारा छान लिया और तुम यहाँ हो ! तुम्हें, पता है कितनी परेशान हुई मैं !”

हमारे घर से कोई ४-५ घर छोड़कर मिसिस मलिक रहती हैं, ये उन्हीं का स्वर था | पर मैंने देखा, कि टॉम एकदम मिसिस मलिक की आवाज़ सुनकर खुश होकर न ही उछला और न उनके पैरों से लिपटा, बल्कि सहम-सा गया था |

न जाने क्यों मेरा दिल बार-बार यह कह रहा था कि टॉम खुश नहीं था ! बस जैसे बेमन से उनके साथ मुँह लटकाए अनुभूत हुआ मुझे |

सारी रात सो नहीं सकी मैं | बार-बात उसका मासूम चेहरा मुझे किसी की याद दिला रहा था | “मासूम सी भूरी, कंचे-सरी आँखें, मुलायम, रोएँदार स्पर्श देती,लेफ़्ट-राइट, लेफ़्ट-राइट उसकी मख़मली पूँछ, तब हिलती जब मैं कहीं बाहर से आती | हर बार उल्टा लेट कर मुझे पूरी सलामी देता और अपनी खुशी जताता |

उसके सारे काम मेरे संग-संग ही होते……. जैसे – मेरे पलंग के साथ ही सोना, सुबह सैर के लिए मेरे आगे-पीछे होना, और सबसे ज़्यादा मेरे हाथों से नहाने के लिए आतुर रहना | बस, जैसे ही ४-६ मग्गे पड़े नहीं कि,एकदम सरपट दौड़ता बालों को मेरे ऊपर झटकते हुए |

मैं तब तक उसे निहारती रहती जब तक वो मेरे आजू-बाजू चार-छै चक्कर लगा-लगा कर थक नहीं जाता |

हमारे पड़ोस की रमिंदर आंटी के यहाँ पल रही उसकी माँ ने इस नन्हें #टिम्मू को जन्म दिया था | मेरी बहुत ज़िद के बाद मेरी माँ उसको मेरे लिए एक खिलौने की तरह लाई थीं | वह केवल पाँच दिन का था | अपनी माँ से दूर वह कुछ दिनों तक बहुत डरा-डरा रहा | कभी-कभी पिताजी उसकी पें-पें की आवाज़ पर जब गरम होकर ऊँचा बोलते तो वह काँपता और डरकर अपने टोकरीनुमा घर में बिछे गरम बिस्तर में से निकलकर मेरी गोद में छिप जाता और खुद को महफ़ूज पाता |

कुछ ही दिनों में उसका और मेरा बहुत गहरा संबंध हो गया | मुझे कभी ये जानने की इच्छा नहीं हुई कि यह किस प्रजाति का है, पर मैं रोज़ उसको देखती वह बड़ी तीव्रता से लंबा, ऊँचा और बड़ा होता गया | नन्हा सा पाँच दिन का #टिम्मू अब पाँच बरस का हो गया था |मानो कल की ही बात हो !

हर आती-जाती आहट का उसको अंदाज़ा था | हमारे घर के आँगन में फल और सब्जियों की क्यारी थी,#टिम्मू को कतई पसंद न था कि उसके अलावा कोई और जानवर उसे घर में दिखे | बिल्ली मौसी तो गलती से भी रुख नहीं करतीं थी हमारे घर का, पर कुछ नन्ही गिलहरियाँ अमरूद खाने के लालच में दबे पाँव आती और चली जातीं | जिस दिन #टिम्मू की नज़र उनपर पड़ती वो भी सरसरे से पाँव रखता और एकदम से उनकी पूँछ उसके मुँह की पकड़ में आती, बेचारी चीं-चीं करती, पर जैसे ही वह मेरी आँखें देखता उसी पल आदर से उसकी दुम हिलती, मुँह खुलता और वह जान बचाकर भागतीं | जब उसे ये एहसास होता वह पुनः भौंकता हुआ उन्हें पूरे मोहल्ले के आखिरी पेड़ तक पहुंचाकर ही दम लेता |

उसकी इन सब शरारतों और लाड़भरी गलतियों पर मुझे बस उसपर प्यार आता |

#टिम्मू के लिए मैंने माँ से दो नए स्वेटर बनवाए पुराने स्वेटर अब उसे बहुत छोटे हो गए थे | बड़े मज़े से सर्दी की रातों में मेरे साथ सैर करता, थोड़ा भौंकता, कभी दौड़ता, कभी शरारत के लिए आगे भागकर कहीं दूर खड़ा होता | कभी-कभी तो मैं दूसरे भयावह सुर सुनकर डर जाती और ज़ोर से आवाज़ देती “टिम्मू-टिम्मू !दीदी तुम्हें छोड़कर घर जा रही है, तुम्हें आना है कि नहीं |”

फिर तो ऐसे आता दौड़कर एकदम मानो वो एक समझदार इंसान हो ! बस झट से मेरे पैरों के पास बैठ जाता और अपने हाव-भाव, मूक भाषा में कहता –”चलो दी ! मैं तो यहीं था |”

हम खुशी-खुशी चल देते |

मैं और टिम्मू एक-दूसरे को बहुत अच्छे से समझते थे |वह जब कोई गलती कर देता तो समझ जाता कि पिताजी उसको डाँटेंगे, तो बस वह उनके घर आते ही मेरे कमरे में या तो मेरे पलंग के नीचे या मेरी रज़ाई में छिप जाता |

वक़्त का परिंदा कब उड़कर फुर्र हुआ मुझे पता ही नहीं चला | अब हमें एक-दूसरे की आदत हो गई थी | कुछ दिनों पहले मैंने पिताजी को माँ से कहते सुना था कि,सामने वाले घर में जो फॉरेस्ट ऑफ़ीसर रहते हैं अब उनका तबादला सतपुड़ा हो गया है, और उनके घर पर जो पैट है उसको वे वहाँ नहीं ले जा पाएंगे | वे किसी ऐसे परिवार की खोज में है जो उसकी ठीक से देखभाल कर सके |

यह सब सुनकर मेरे दिल में वे सारी बातें घूमने लगीं जो मैंने पिछले १ साल में देखीं और अनुभव की थीं |पिताजी की उन अंकल से दोस्ती, रोज़ सुबह की सैर पर दोनों का खूब गप्पें मारना, जिस दिन अंकल सैर पर नहीं आते बस हालचाल के बहाने से उनके घर जाना और चाय-कॉफी के साथ-साथ उनके पैट #टफ़ी को गोद में उठाना उसे लाड़ करना, सैर और चाय तो एक बहाना था असल में उन्हें #टफ़ी से काफी लगाव हो गया था |

वह पामेरियन प्रजाति का था, देखने में काफ़ी खूबसूरत था, पर था बहुत चंचल और शैतान | श्वेत रंग, मुलायम फ़र वाले बाल, उसे छूते ही हाथों में गुदगुदी-सी महसूस होती | भले ही वह पिताजी का पूरा जूता चबा जाता, पर पिताजी उसकी इन्हीं बातों पर फिदा थे |

मुझे अंदर ही अंदर यह डर था कि कहीं पिताजी उसे हमारे घर न ले आएँ |

पूरी रात मुझे यही बात सोचकर नींद नहीं आई कि कल क्या होने वाला है ! करवटें बदलते-बदलते मेरी आँखें कब निद्रा की गोद में समाईं ज्ञात ही न हुआ |

सुबह सूरज मेरे मुँह तक चढ़ आया, खिड़की से मानोसीधा मुझ पर निशाना साध रहा हो और चिढ़ाकर कह रहा हो, “लो आज तो तुम मुझसे हार ही गई ! तड़के नहीं उठा गया तुमसे, पर मैं तो अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ सकता न ! हा….हा….हा |”

मैं झटपट बिस्तर छोड़कर भागकर नीचे उतरी और वही देखा जिसका मुझे डर था !! कि… आँगन में #टफ़ी पिताजी के साथ गेंद से खेल रहा है | हतप्रभ सी ! मैं देखती रह गई कि बार-बार गेंद ऊपर उछलती और टफ़ी कभी उसे कैच कर लेता तो कभी गेंद मुँह से छूटकर दूर चली जाती तो वह उसे उठाने के लिए भागता |

वहीं दूसरी ओर मुझे #टिम्मू कहीं नहीं दिखा | रात को कब मेरे पलंग के नीचे से गया होगा कुछ याद नहीं आ रहा, पर कहाँ है आखिर ??

मैं तेज़ी से दौड़ी- “टिम्मू…… टिम्मू…..तुम कहाँ हो ?”

पूरे घर का कोना-कोना छान लिया, टिम्मू कहीं नहीं था |मेरी धड़कनें तेज़ थीं, “माँ…. माँ…. टिम्मू कहाँ है ? क्या आपने देखा ? पिताजी क्या आपने देखा ?”

माँ ने पिताजी की ओर देखा और चुप खड़ी रहीं…. अब तो मुझे और भी डर लगा |

मैंने दुबारा पूछा – “अरे ! कोई तो कुछ बोलो !”

मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से किसी संदेह से धड़क रहा था तभी माँ बोलीं – “ये तुम्हारे पिताजी हैं न इनसे ही पूछो |कौन आएगा-कौन जाएगा सब इनकी ही मर्ज़ी चलती है न, कुछ कहेंगे तो हमें ही सुना देवेंगे छत्तीस बातें |”

पिताजी नज़रें चुरा रहे थे और खुद को अनभिज्ञ दिखाना चाहते थे, पर वो मेरे सवालों से नहीं बच सकते थे |फौरन मैंने गेंद उठाई और टफ़ी को ज़ंजीर के साथ खूँटे से बांध दिया और तब पूछा कि “बताइए कहाँ है #टिम्मू ?”

बार-बार पूछने पर भी जब वे नहीं बोले तब मेरी शंका गहरी हो गई, जैसे ही मैंने अपना कदम दरवाजे की ओर बढ़ाया वैसे ही पीछे से स्वर आया – “ग्यारह साल कौ हो गऔ तौ, बूढ़ो हो चलो तौ का करीं अब, और एक-आधा साल में मर-मरा जातो तौ का करतीं, अब गम्म खाओ जा टफ़ी सें दोस्ती करो अब, उन्ने कितते पइसा दए ई की देखभाल खौं !”

मैं ये सुनकर हक्की-बक्की रह गई ! कि इंसान हो या जानवर क्या हर प्यार की कीमत पैसों से आंकी जाती है…….. आँखों में आँसू लिए मैंने तीव्रता से मुड़कर पिताजी से आग्रह किया और कहा – “बूढ़ा तो सबको एक दिन होना है ! आप मुझे बस ये बताइए कि टिम्मू कहाँ है ?”

माँ तब बोली – “आधी रात को ही छोड़ आए हैं कहीं दूर, पूछो इनसे, इनके लिए तो मानुष और जानवर सबही एक जैसन होईं |”

मेरा सब्र टूट गया और मैं ज़ोर से चिल्लाई – “आप बोलेंगे या नहीं मुझे भी वहीं पहुंचा दीजिए जहां मेरा टिम्मू है |”

तब जाकर पिताजी बोले कि “जंगल में छोड़ो है बाखौं |अब ई घर में वापिस न आएगो, सुन ल्यो कान खोलकें |”

मैं हैरान थी ये सोचकर कि ईश्वर की बनाई इस दुनिया में कितना भेदभाव करते हैं लोग ! मैं इतनी परेशान हुई,अपने घर की दहलीज़ से भागती ऊबड़-खाबड़ से रास्ते में से गली के इस छोर से भागती-भागती जा पहुंची आखिरी मोड़ पर जहां से पक्की सड़क शुरू होती थी |साँझ तक मैं वहीं बैठी रही, पर टिम्मू की कोई आहट नहीं लगी | साँझ कब गहरी रात में तब्दील हुई मुझे नहीं पता चला | माँ मुझे ज़बरदस्ती घर ले गईं, पर रो-रोकर मेरा बुरा हाल हो रहा था उसकी नादानियाँ, मासूम चेहरा नहीं भूलता मुझे |

मुझे सारी रात बुखार रहा, सुबह माँ ने देखा कि मेरा बुखार नहीं उतर रहा, तब पिताजी डॉक्टर को बुलाकर लाए , मेरा बदन बुखार से तप रहा था, डॉक्टर साहब ने माँ से कारण पूछा तो माँ ने सब सच-सच बता दिया |

डॉक्टर बोले –  गहरा सदमा लगा है बच्ची को, आप इसका #टिम्मू इसे वापिस ला दीजिये, ये बिलकुल अच्छी हो जाएगी |” इतना कहकर वे चले गए |

माँ ने पिताजी को बहुत समझाया, और जब पिताजी ने देखा कि मेरा बुखार उतर ही नहीं रहा तब जाकर उन्होंने मुझसे वादा किया कि वो टिम्मू को वापिस लेकर आएंगे |

मैं उसके इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठी थी कि वो कब आएँ और मैं भागकर उसको गले लगाऊँ | दो दिन बाद पिताजी जंगल के बाहर जहाँ वे टिम्मू को छोड़कर आए थे उसी जगह पर गए पर टिम्मू वहाँ नहीं था | वे थोड़ा और आगे गए और पुनः उन्होंने उसे आवाज़ दी –”टिम्मू….. टिम्मू…..

तभी उन्हें कराहने की आवाज़ सुनाई दी, एक पेड़ के पीछे #टिम्मू ज़ख्मी हालत में कराह रहा था, पिताजी ने देखा कि उसे किसी जंगली कुत्ते ने काटा है, उन्होने तुरंत उसकी कमर पर से रिसते खून को एक कपड़ा बांधकर रोक दिया और उसे जल्दी से उठाकर अपने मित्र की बैलगाड़ी में घर लेकर आए |

उनके मन में बहुत पछतावा था पर #टिम्मू की हालत बहुत खराब थी | पहले हमने डॉक्टर से उसका इलाज़ करवाया उसका खूब ख़याल रखा | पर उसके अस्वस्थ शरीर और निराश आँखों में कई सवाल थे, मानो कह रहा हो कि- “इंसान हमारे साथ मनचाहा व्यवहार क्यों करते हैं ?”

धीरे-धीरे वह मेरे लाड़-प्यार से ठीक भी हो गया पर मैं महसूस कर रही थी कि जो #टिम्मू फुदकता था ,ज़रा सी गिलहरियाँ उसे सहन नहीं थीं, एकाधिकार था उसका हम पर अब अपने सामने टफ़ी को देखकर उसकी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं !!

अब वह कुछ देर मेरे संग खेलता फिर अपनी निश्चित जगह पर जाकर एकदम शांत बैठकर अपना खाना खाता | पहले सा अब वो मेरी चीजों को देखकर लालसा नहीं दिखाता, मेरे पीछे हर बार नहीं आता | क्या कहूँ ये उसकी समझदारी थी, नाराजगी थी या कि चोट उसके शरीर पर नहीं उसके हृदय पर लगी थी |

कुछ १०-१५ दिनों के बाद एक रात अचानक हम सब गहरी नींद में सो रहे थे, तभी कुछ आहट हुई, जो सिर्फ #टिम्मू को सुनाई दी | #टिम्मू ने अपनी आवाज़ से हम सबको तो उठाया ही साथ-ही-साथ उन चोरों को भी खदेड़ा जिनमें से एक चोर ने उस पर वार कर उसे बुरी तरह ज़ख्मी किया |

घर में सभी जाग चुके थे, वहीं टफ़ी भी ज़ोर-ज़ोर से #टिम्मू के पीछे आवाज़ निकाल कर सुर मिला रहा था |जबतक हम सभी आँगन में # टिम्मू के करीब पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी |

#टिम्मू का रक्त काफ़ी बह चुका था, वह अपनी आखिरी साँसे गिन रहा था और उसकी आंसुओं से भरी नज़र बस मेरी नज़रों से टकराई… मानो उसके इस असीम स्नेह के बदले हमने उसे क्या दिया !! माँ ने #टिम्मू का सिर मेरी गोद में रखा…. मैं समझ न पाई पर माँ समझ गईं थीं सब… वे तुरंत गंगाजल लाईं और गीता पढ़ने लगीं |

देखते ही देखते #टिम्मू की खुली आँखें बस खुली ही रह गईं…….और वह अपने परिवार के प्रति अपना फर्ज़ अदा कर गहरी नींद में चला गया था | अब वो हमेशा के लिए मुझसे दूर हो गया ……..| मैं आज भी उसे नहीं भूल पाई |

नम आँखेँ लिए न जाने क्यों टॉम के हाव-भाव देखकर मैं अतीत की यादों संग अपने बचपन में खो गई |

इस बात को वर्षों बीते, घर बदला, शहर बदला…… अब कहाँ होगा मेरा #टिम्मू, जहां भी हो भगवान उसे खुश रखे |

गीली आँखों को पौंछ उठकर जैसे ही मैंने अपने कमरे की खिड़की के पर्दे हटाए, देखा कि लॉन में फिर से मिसिस मलिक का पैट #टॉम मेरे कमरे की ओर मुँह करके बैठा है | मैं हैरान थी कि क्या रिश्ता है इसका मुझसे !!

जब मैं तैयार होकर घर से रवाना हुई और ड्राईवर को गाड़ी निकालने को कहा तभी पीछे से मुझे ऐसे लगा,मानो मेरा आँचल जैसे किसी ने खींचा हो, पलटकर देखा तो हू-बहू #टिम्मू-सा #टॉम स्नेह भरी नज़रों से मुझे निहार रहा था, मानो कह रहा हो, कि ‘मैं तुमसे मिलने आया हूँ दीदी !’

मुझसे नहीं रहा गया सब भूल मैंने नीचे बैठ उसे ज़ोर से गले लगाया और कहा – “टिम्मू तुम्हीं हो न तुम वापिस आए हो न , पता है, मैं तुम्हारे बिना कितनी उदास थी …. खुद को माफ नहीं कर पाई अब तक… अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगी……मेरा टिम्मू बस ………मेरा……

क्या सच्चा स्नेह सिर्फ इन्सानों तक ही सीमित है…..?इंसान से कहीं बेहतर इसे जानवर निभाते हैं |

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।