कविता

व्यंग्य-किस्मत

मैं आपकी तरह बेवकूफ नहीं हूँ
जो किस्मत के भरोसे बैठा रहूं
किस्मत हमारी है हमारे काम आयेगी
उसकी कार्यशैली पर ऊंगलियां
जब तब उठाता ही रहूं,
अनावश्यक काम में रोड़ा अटकाता रहूं।
मैं खुद तो किसी काम का नहीं हूँ,
उस पर किस्मत के कामधाम में
जबरन ऊंगलियां घुसेड़ता रहूं।
अरे भाई! किस्मत का भी
अपना कुछ तो संविधान होगा
विपक्ष की तरह हमारा टकराव
भला क्या अच्छा होगा?
अपनी चेतना जगाइए
सरकार से कुछ तो सीखिये
खुद को हमेशा विपक्ष
और सरकार को किस्मत समझिए।
विपक्ष जो चाहता है
सरकार भला कब करती है
आखिर विपक्ष भी
सरकार की कब सुनती है,
हमेशा अपने मन का ही करती है।
अच्छा है किस्मत को अपना काम करने दें,
जीना है तो जियो, वरना मर जाओ
किस्मत ने रोका कब है?
ये अलग बात है कि
आप मरना चाहते हैं
मगर मर नहीं सकते,
क्योंकि किस्मत मरने नहीं देगी
किस्मत से किस्मत अच्छी है
तो कोई बात नहीं,
वरना किस्मत की लीला
बड़ी निराली है,
न जीने के रास्ते देगी
न मरने के बहाने देगी।
किस्मत हर कदम पर आपको
अपनी उपस्थिति का आभास देगी।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921