कविता

पहाड़

हरे -भरे पेड़,
हरी- हरी नरम घास,
नाचते मोर-चहकती चिड़ियां,
फूलों पर मंडराते भंवरे,
हवा में इठलाती तितलियां
पहाड़ों को सुंदर/
बहुत सुंदर बनाते हैं ।
परंतु पहाड़ अपने सीने में
असीम दर्द छिपाए हुए हैं
पहाड़ हमें दिखते-
हंसते- मुस्कराते
दूर से…
हमने पहाड़ को बहुत दर्द दिया है
विकास के नाम पर !
हमने अपने स्वार्थ के लिए
कमजोर कर दिया पहाड़ को ।
वे टूट रहे हैं, तिल- तिल मर रहे हैं
अपने आंसू नहीं दिखा सकते किसी को-
पहाड़ है न इसलिए…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111