कविता

गीत भी तुम साज भी तुम

गीत भी तुम साज भी तुम
सरगम की आवाज भी तुम
गुनगुनाता हूँ मैं हर    दिन
मेरे सपनों की ख्वाब हो तुम

गीत भी तुम साज भी तुम
नील गगन के परवाज हो तुम
मिल कर तारों की सैर कर आयें
प्यार की दहलीज पर पैर जमायें

गीत भी तुम साज भी तुम
प्रेमनगर की हमराज हो तुम
एक दूजे के बाँहो में खो जायें
बादलों में ओझल हो।   जायें

गीत भी तुम साज भी तुम
प्रेम गीत के अल्फाज हो तुम
प्रेम चमन को चन्दन से महकायें
गुलाब की पंखुड़ी में सो जायें

गीत भी तुम साज भी तुम
तबले पर की थाप हो तुम
दोनों मिलकर चलो धूम मचायें
संगीत की दुनियॉं में मदहोश हो जायें

गीत भी तुम साज भी तुम
प्रेम धुन की जज्बात हो तुम
थिरक थिरक कर गीत गुनगुनायें
मोर मोरनी बन नृत्य दिखलायें

गीत भी तुम साज भी तुम
प्रेम गली की नाज हो तुम
सपनों की महल में खो जायें
मेघों में रस बस हम जायें

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088