कविता

लागी लगन

मन, कर्म और विचारों से जो
हमें पसंद होता है,
हम उसी में रम जाते हैं
लगन लगा बैठते हैं।
लेखक लेखनी से
सैनिक सेना और सीमा से
किसान खेती से
व्यापारी व्यापार से
विद्धार्थी पढ़ाई से
डाक्टर मरीज और दवाई से
आशिक आशनाई से
माँ अपने बच्चों से
पति पत्नी एक दूसरे से
बड़े बुजुर्ग परिवार से
नेता राजनीति से
अपराधी अपराध से
…………………..से
सबके अलग अलग क्षेत्र हैं
सबकी अपनी अपनी पसंद है।
किसकी किसमें लगन लग जायेगी
इससे हर कोई पहले से अंजान है।
लगन लगाने के लिए भला
कब कौन परेशान है,
लगन लग जाती तब भी
न होता कोई हैरान है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921