कहानी

मैं भी इंसान हूँ..

मैं भी इंसान हूँ
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दिसंबर की एक और सर्द रात गुजर चुकी थी। कोहरे की झीनी चादर ने सूर्य की किरणों के धरा पर आगमन को सीमित कर दिया था।
अमर ने लिहाफ से हाथ बाहर निकालकर बेड के नजदीक पड़े मोबाइल को उठाया और समय देखकर चौंक पड़ा। ‘सुबह के आठ बज गए हैं, इसका मतलब दिन काफी चढ़ गया होगा और मैं हूँ कि अभी तक बिस्तर में ही दुबका हुआ हूँ।’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए वह चल दिया बाथरूम की तरफ नित्य कर्म से फारिग होने।
कुछ देर बाद वह नहा धोकर बरामदे में पहुँचा तो ठंड के मारे उसे कंपकंपी छूट गई।
बाहर लॉन में गुनगुनी धूप में उसकी पत्नी रजनी अलाव जलाकर हाथ सेंकते हुए उसकी तरफ ही देख रही थी। उसके नजदीक पहुँचते ही उसने एक कुर्सी अलाव के नजदीक खिंच दी और बोली, “गुड मॉर्निंग, अमर ! आज तो बहुत ठंड है। तुम अलाव के पास बैठो। मैं अभी कुछ लेकर आती हूँ। वैसे भी आज छुट्टी का दिन है तो कोई जल्दबाजी तो है नहीं !”
मुस्कुरा कर उसे ‘गुड मॉर्निंग’ कहता हुआ अमर अलाव के नजदीक कुर्सी लेकर बैठ गया और मोबाइल का नेट ऑन कर दिया। ढेर सारे व्हाट्सएप संदेश उसकी स्क्रीन पर फ़्लैश होने लगे। अपनी फ़ेसबुक फ्रेंड नेहा का लाल सुर्ख गुलाब की तस्वीर के साथ ‘गुड मॉर्निंग’ का संदेश देखकर उसका चेहरा किसी ताजे गुलाब की मानिंद खिल गया। जल्दी जल्दी उसने व्हाट्सएप पर नेहा को लिखा,” थैंक्स अ लॉट डिअर, वेरी वेरी स्वीट गुड मॉर्निंग ! एन्जॉय द डे !”
नेहा ऑनलाइन थी। चोर नजरों से रजनी की तरफ देखते हुए अमर ने व्हाट्सएप से रजनी को वीडियो कॉल कर दिया। कॉल पहले ही म्यूट कर दिया था उसने। स्क्रीन पर अमर को देखते ही नेहा एकदम खिल सी गई और बड़ी शोख अदा से एक फ्लाइंग किस अमर की तरफ उछाल दिया।
 मुस्कुरा कर उसे प्रत्युत्तर देते हुए अमर ने अचानक रजनी को तश्तरी में कुछ रखकर अपनी तरफ आते देख लिया। उसने हडबडाहट में कॉल कट कर दिया और फेसबुक देखने लगा।
 रजनी एक बड़ी सी तश्तरी में कुछ भुनी हुई मूँगफलियाँ ले आई थी। उसके सामने रखकर वह स्वयं बगलवाली कुर्सी पर बैठ गई। कुछ मूँगफली की फलियाँ उसके हाथ में रखते हुए बोली, ” गैस पर चाय चढ़ा आई हूँ। जब तक पकती है हम इसके कुछ दानों का मजा ले लें।”
फिर उसके चेहरे की तरफ गंभीरता से देखते हुए बोली, “आपने बात अधूरी क्यों छोड़ दी वीडियो पर नेहा से ?”
“व ..वो..नहीं तो ? क.. कौन नेहा ? मैंने तो किसी को वीडियो कॉल नहीं किया ?” अचानक अप्रत्याशित सवाल सुनकर अमर हडबडाहट में बोल पड़ा।
” तुम्हें मुझसे झूठ बोलने की कोई जरूरत नहीं है अमर ! मैं जानती हूँ नेहा तुम्हारी फेसबुक फ्रेंड है। वह मेरी भी फ्रेंड है इसलिए उसको भी जानती हूँ।” रजनी गहरी नजरों से देखते हुए चेहरे पर अर्थपूर्ण मुस्कान फैलाते हुए बोली।
अमर के पास बगलें झाँकने के अलावा अब और कोई चारा नहीं था।
चेहरे पर मुस्कान बिखेरे उसी बिंदास अंदाज में रजनी आगे कहती गई, “अमर ! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है और उससे भी अधिक अपनेआप पर भरोसा है। इसकी वाजिब वजह भी है। कोई कारण नहीं कि तुम मेरी उपेक्षा करो। मुझे यकीन है कि हमारा बंधन इतना कमजोर नहीं कि कोई नेहा या जुली का आकर्षण उस बंधन को ढीला भी कर सके। हमारा साथ तो जन्मजन्मांतर का साथ है। अगर तुम्हारा मन नेहा से कुछ देर बात करके आत्मिक खुशी महसूस करता है तो मुझे कोई हक नहीं कि तुम्हारी राह में रोड़े अटकाऊँ, क्योंकि तुम्हारी खुशी में ही अपनी खुशी तलाशती मैं भी एक आम गृहिणी हूँ , एक पत्नी हूँ ! लेकिन फिर भी तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि तुम्हें वह पसंद भी आएगा।  मुझे याद है शादी के वक्त अग्नि को साक्षी मानकर हमने जन्म जन्म तक एक दूसरे के सुख दुःख में साथ  निभाने का वादा किया था। मैंने तो अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया है लेकिन तुमने ? …..कोई बात नहीं और मुझे कोई ऐतराज भी नहीं अगर तुमने ईमानदारी से अपना वादा नहीं निभाया तो ! मुझे कोई ऐतराज नहीं तुम्हारी और नेहा की दोस्ती से भी लेकिन …!” कहते कहते वह एक पल को रुकी और उसने एक गहरी साँस ली।
इस बीच अमर के चेहरे पर कई रंग आते और बदलते गए। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर रजनी उससे कहना क्या चाह रही थी। उसे नेहा की दोस्ती से कोई ऐतराज नहीं था तो फिर ?
 कुछ पल की खामोशी के बाद अमर को ध्यान से देखती हुई रजनी बोली, ” सच कह रही हूँ मैं, मुझे तुम्हारी और नेहा की दोस्ती से वाकई कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि मैं हर हाल में तुम्हें खुश देखना चाहती हूँ, चाहे तुम्हें वह खुशी नेहा की दोस्ती से ही क्यों न मिले ! लेकिन क्या तुम भी मेरे बारे में ऐसा सोच सकते हो ? क्या दे सकते हो मुझे इतनी आजादी ?  नहीं न ?” कहते हुए रजनी के चेहरे पर एक दर्दभरी मुस्कान खिल उठी और वह एकटक अमर के चेहरे को ध्यान से देखने लगी जबकि अमर उससे नजरें चुराते हुए दूसरी तरफ देखने लगा था।
कुछ पल की चुप्पी के बाद रजनी ने आगे कहा, ” जानती हूँ इससे तुम्हारे पौरुष को ,तुम्हारे अहम को , तुम्हारे सम्मान को ठेस लगेगी। मुझे तुमसे सिर्फ यही कहना है कि जिसमें तुम्हें खुशी मिलती हो तुम वह हर काम करो ,बस एक बार अपनी जगह मुझे रखकर देखना और सोचना मेरे बारे में कि मैं भी हाड़ माँस से बनी एक इंसान हूँ !” कहते हुए अचानक उसकी नजर गैस पर उबलती चाय पर पड़ी और वह किचन की तरफ बढ़ गई।
रजनी जब तक चाय लेकर दुबारा अमर के पास वापस आती वह नेहा को फेसबुक और व्हाट्सएप दोनों जगह ब्लॉक कर चुका था।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।