कविता

जीवन भी गणित

हम और हमारे जीवन का
हर पल किसी गणित से कम नहीं है,
जीवन में जोड़ घटाव भी
यहाँ कम कहाँ है,
गुणा भाग का खेल तो
चलता ही रहता है।
कभी जुड़ना तो कभी घटना
शेष भी रहता सदा है,
कामा, बिंदी, बराबर,उत्तर भी यहां है।
कभी सही तो कभी गलत भी है
कभी उलझन कभी सुलझन
कभी आसान कभी मुश्किलें
जीवन में गणित से कहाँ कम है?
गणित से पीछा छूट सकता है
या पीछा तो छुड़ा लोगे,
मगर जीवन के गणित से
रोज के जोड़, घटाव, गुणा, भाग
शेष, उत्तर, बराबर से आखिर
पीछा भला कैसे छुड़ा लोगे?
बिना गणित के जीवन का भला
कैसे गुजारा कर लोगे?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921