बाल कविता

हाथी दाँत

इक दिन हाथी ज़ोर से चीखा
दर्द हुआ था दाँत में तीखा.
दौड़ी भागी हथिनी आई
कान पकडकर डॉक्टर लाई .
डॉक्टर ने पूछे कई सवाल
खूब करी फिर जांच पड़ताल.
बहुत सोचकर बोला डॉक्टर,
“बिगड़ गई है बात यहाँ पर
अब तो है बस यही उपाये
झट से दाँत निकाला जाये.”
डर से उड़ गये हाथी के होश
डॉक्टर ने कर दिया उसे बेहोश.
दोनों हाथ से पकड़ा दाँत को
खूब ज़ोर से खींचा उसको.
बहुत लगाया डॉक्टर ने ज़ोर
दाँत उखड़ कर गिरा इक ओर.
सबको हाथी दाँत दिखाया
डॉक्टर अपने पर ही इतराया.
लेकिन जब हाथी होश में आया
खूब ज़ोर से वह चिल्लाया.
“मूर्ख, तुमने किया यह क्या
अच्छा दाँत है उखाड़ दिया.
यह नहीं था खाने वाला दाँत
यह तो था दिखलाने वाला दाँत.”

इंदु भूषण अरोड़ा

रिटायर्ड केंद्रीय सरकार का अधिकारी हूँ. लिखने के हॉबी है. पहली बाल कहानी नंदन में प्रकाशित हुई थी फिर लगभग सौ बाल कहानियाँ चंपक और नंदन में छपीं आजकल ब्लॉग लिखता हूँ. अपना फोटो छपवाने की रूचि नहीं है.