गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

चराग़-ए-मुहब्बत जलाओ बहुत अंधेरा है।
गजल फिर वही आज गाओ बहुत अँधेरा है।।
खुदा का तुम्हें वास्ता चुप न बैठो सनम तुम।
मेरी बज्म में मुस्कुराओ बहुत अँधेरा है।।
वही फिर तराना मुहब्बत का छेड़ो गजल में।
जमीं पर सितारे बुलाओ बहुत अँधेरा है।।
हटाओ ये परदा हो दीदार सदका करें हम।
झुकी पलकें अब तो उठाओ बहुत अँधेरा है।।
निगाहों में हैं हम तुम्हारे पढ़ो तो जरा तुम।
हमें अपने दिल में बसाओ बहुत अँधेरा है।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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