कविता

मां बन गई हैं बेटियां

जब जन्म लेती बेटियां
जीवन तारण लगती बेटियां,
जब घुटनों के बल चलने लगती
घर आँगन को खुशहाल बनाती
पूरे घर का मुआयना करती बेटियां।
धीरे धीरे बढ़ती जाती बेटियां
पढ़ने लिखने के साथ
घर के काम भी सीखती बेटियां,
तब लगता है समय पूर्व ही
जल्दी बड़ी हो गई हैं बेटियां।
शादी की उम्र में माँ बाप की
फिक्र भी बढ़ाती बेटियां,
कन्यादान कर जिम्मेदारी से
मुक्त होने का संदेश देती बेटियां।
पिता को माँ के जैसा होने का
भाव तब दिखाती बेटियां।
पिता की सुख सुविधा खाने पीने
कपड़े, दवाई तक का ख्याल
करने लगती हैं बेटियां,
तकलीफ चिंता में पिता का
संबल बनती हैं बेटियां।
तब लगता है हर पिता को
पिता के लिए माँ बन गई हैं बेटियां
उनके जीने का आधार हो गई हैं बेटियां।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921