कहानी

अधूरा इश्क

आज फेसबुक पर एक रिक्वेस्ट आई नाम देखकर पहले तो मैं चौक गया, नाम और चेहरा कुछ पहचान पहचाना सा लग रहा था, प्रोफाइल को मैंने खोलने की कोशिश की तो उसमें सिक्योरिटी लॉक लगा था, एक छोटी सी तस्वीर नजर आ रही थी प्रोफाइल में, दो दिन तक मैं उस तस्वीर को याद करने की कोशिश करता रहा उसके चेहरे को पहचानने की कोशिश करता रहा, तभी मेरे दोस्त रितेश का फोन आया कैसा है? सुनील, मैंने बोला मैं तो ठीक हूं रितेश और तू बता क्या चल रहा है
रितेश.. बस मस्त है यार
रितेश ने बोलना शुरू किया यार आज उस की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई है जिसके लिए तू कॉलेज में पागल था, यार मजाक ना कर बता किस कि, अंशिका की..यार और किसकी, आज वह दो बच्चों की मां है,पर आकर्षण वैसा हीआज भी है,
सुनील ने रितेश को बताया मेरे पास भी रिक्वेस्ट आई है रितिका की, पर मैं पहचान नहीं पाया यार, रितेश ने मजे लेते हुए बोला यार अब तेरी उम्र हो गई है, सुनील ने जैसे रितेश की बात को सुना ना हो,उसने कहा फोन रख..मैं तुझसे बाद में बात करता हूं, सुनील ने रितेश का फोन काट के झट से फेसबुक खोला और अंशिका की रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया, ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई कई दिनों से प्यासा और उस प्यासे को पानी का घड़ा दिख गया हो और वह पानी पीने के लिए एकदम उतावला हो .
सुनील प्रोफाइल को चेक करने लगा, फोटो को बड़े गौर से देखता जा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो गहन अध्ययन में डूबा हो,जैसे उसे पीएचडी आज ही कर लेनी थी, अंशिका फोटो में बिल्कुल भी ना बदली थी, ऐसा लग रहा था जैसे,जहां उसने छोड़ा था वह वहीं खड़ी है, उसको देख कर ऐसा लग रहा था की समय रुक गया हो.
अंशिका की दो प्यारी प्यारी बेटियां थी, एक फोटो को बहुत ध्यान से देख रहा था, फोटो बहुत ही प्यारी लग रही थी आज सुनील को अपना बीता हुआ वक्त याद आने लगा कितनी सुनहरे पल थे, काश अंशिका उसकी हो पाती एक ठंडी सांस ली सुनील ने,अपने कॉलेज के पुराने दिनों में खो जाता है….
सुनील ने नया-नया नेट क्वालीफाई कर के यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन कर आया था वह क्लास लेने के लिए जब क्लास के सामने पहुंचा कुछ लड़कियां ग्रुप बनाएं खड़ी थी।
वह चुपचाप किनारे से निकलकर क्लास में चला गया.. और ब्लैक बोर्ड पर लिखने लगा क्लास में बैठे स्टूडेंट्स उसको पहचान ना पाए, ब्लैक बोर्ड पर ही अपना परिचय दिया…।
मेरा नाम सुनील शर्मा है और मैं आपका नया प्रोफेसर हूँ….पॉलिटिकल साइंस पढ़ाऊंगा..। क्लास के सारे स्टूडेंट खड़े होकर गए रिस्पेक्ट में……, सुनील ने सबको बैठने के लिए कहाँ क्लास के बाहर अंशिका अपने ग्रुप के साथ खड़ी थी, सारे स्टूडेंट सर को अभिवादन करते देख वह भी समझ गई क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए हैं वह सब भी क्लास में भागी क्लास में आकर बेंच पर बैठ गई…। मेरी और अंशिका की नजर एक दूसरे से मिली, मैंने आंशिका को बैठने के लिए बोला, अंशिका मुझको को एकटक देखे जा रहे थी। मैं अपने आप को असहज महसूस करने लगा.
अंशिका को मेरी तरफ देखता हुआ देख अंशिका की दोस्त ने उसको कोहनी मारी धीरे से बोला क्या कर रही है,अंशिका जैसे होश में आई… पता नहीं क्यों मैं भी अंशिका की तरफ आकर्षित हो रहा था, अंशिका में कुछ अजीब सा आकर्षण दिखा 5 फुट 6 इंच की हाइट गोरा रंग , उसका आकर्षण मुझे अंदर के अंदर बेचैन कर रहा था।
अंशिका भी मुझे एकटक देखे जा रही थी उसे अगल-बगल किसी का भी ध्यान ना रहा वह मुझको को एक टक घूरे जा रही थी मेरी और अंशिका की उम्र में दो-तीन साल का ही अंतर था, मेरा आज पहला दिन था कॉलेज में,
मैंने अंशिका को अपनी तरफ लगातार देखते हुए देखकर आवाज लगाई “हेलो मैडम” हां यू खड़ी हो जाइए, क्या बात है आप मेरे चेहरे की तरफ क्या देख रही हैं ब्लैक बोर्ड पर ध्यान दीजिए मैं क्या पढ़ा रहा हूँ…।
अंशिका को मुझसे ऐसे सवाल की उम्मीद ना थी, वह झेप गई और सर नीचे करके, कॉपी में लिखने लगी.. क्लास खत्म होते ही वह जल्दी से बाहर निकल गई वह मुझसे आंखें नहीं मिला पा रही थी…। मैं भी क्लास से निकलकर स्टाफ रूम की तरफ बढ़ गया ..। बाहर अंशिका को देखकर मैं भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया। पर वह सर नीचे किए हुए खड़ी थी।
रोहिणी अंशिका के फास्ट फ्रेंड थी, रोहिणीऔर बाकी अंशिका की फ्रेंड अंशिका को चिढ़ाने लगी क्या बात है? सुनील सर ने तो पहली ही नजर में तुझे क्लीन बोल्ड कर दिया… अंशिका ने कस के एक मीठी सी डांट लगाई चुप रहो तुम सब, सब जोर से हंसने लगी और वे सब वहां से कैंटीन की तरफ बढ़ गई ….. आज अंशिका का मन कैंटीन में भी ना लग रहा था.। जो अंशिका कैंटीन में समोसे को बड़े चाव से खाती थी आज वह समोसे को कुरेद रही थी जैसे उसका खाने का मन ही ना हो, रोहिणी ने अंशिका को फिर टोका क्या बात है यार कोई एक नजर में कैसे अपना दिल दे सकता हैं।
कॉलेज का पहला दिन मेरे लिए यादगार बन गया अब तो कॉलेज जाने पर मेरी नजरे सिर्फ अंशिका को खोजती, पता नहीं मुझे क्या हो गया था,अब हमारा और अंशिका का मिलना जुलना कॉलेज की लाइब्रेरी में होता , कॉलेज में धीरे-धीरे हम मशहूर होने लगे, विक्रम एक अजीब सी कशिश थी,मैं भी अपने दोस्तों में अंशिका के बारे में बात करने लगा, अचानक से अंशिका लगातार एक हफ्ते तक गायब थी. उसके दोस्तो से पूछने पर भी ना पता चला की वो क्यू नहीं आ रही..
एक हफ्ते बाद जब वो कॉलेज आई तो अंशिका की दोस्त ने मुझे आकर बता दिया. अंशिका आज कॉलेज आई हैं पर उसके साथ उसके भाई भी हैं,आज जब मैं कॉलेज पहुंचा क्लास के अंदर,तो अंशिका ने मुझसे नजर नहीं मिलाई, मैं अंशिका से बात करने के लिए तड़प रहा था, मैं क्लास में पढ़ा रहा था तो अंशिका ने एक बार भी अपनी नजरों को मुझसे नहीं मिलाया,क्लास खत्म होने के बाद, अंशिका सबसे पहले क्लास से निकल गई, आज मेरी बेचैनी का कारण अंशिका थी,…अंशिका से बात करने के बहाने ढूंढने लगा…
अंशिका की दोस्त रोहिणी को मैंने अपने कॉन्फिडेंस में लिया, रोहिणी ने किसी तरह मेरी मुलाकात अंशिका से करवाई, अंशिका से जब बात हुई फूट-फूट कर रोने लगी, अंशिका को मैंने अपने गले से लगाया, चुप कराने लगा, पर वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी, थोड़ी देर बाद उसकी सिसकियां बंद हुई, फिर उसने ने बोलना शुरू किया, सुनील तुम मुझे भूल जाओ, मेरे घर में सबको पता लग गया है भाइयों ने तो यहां तक वार्निंग दे दी हैं कि अगर उन्होंने तुम्हारे साथ देखा मुझे तो, वो मुझे भी मार डालेंगे और तुम्हें भी,
सनील..अरे यार तुम डरो नहीं, मैं सब संभाल लूंगा,
अंशिका..तुम मेरे भाइयों को नहीं जानते..वह जो कहते हैं वह कर दिखाते हैं,।. अभी हम बात कर ही रहे थे कि तभी अंशिका के भाई कमरे में आ जाते हैं… अंशिका सकपका जाती है अंशिका के भाइयों ने आव देखा न ताव, अंशिका के सामने वो मुझे मारने लगे मारते मारते उन्होंने अधमरा कर दिया.. और मुझे ले जाकर मेरे गांव जाने वाली ट्रेन मे डाल दिया, मेरी हालत हिलने डुलने कि ना रही, ट्रेन के टीटी और कुछ लोगों ने मुझे रेलवे हॉस्पिटल में एडमिट कराया दूसरे दिन जब मुझे होश आया तब मेरे घर वालों को इनफॉर्म किया, एक हाथ में चोट लगने से मेरा पैर खराब हो गया, मेरे घरवाले आकर मुझे घर नहीं गए, मेरे ट्रांसफर भी मेरे टाउन हॉल हो गया, अंशिका का फोन नंबर भी बदल गया,उसका कॉलेज आना बंद हो गया, दोस्तों से बस इतना ही पता चला… तभी सुनील के फोन की घंटी बजी और ध्यान टूटा , यादों की दुनिया से बाहर आया,आंखों से आंसू बह रहे थे,
मेरे घर में भी सिर्फ मां और एक बहन थी, मैंने कसम दी अब दोबारा मेरा जाना नहीं हुआ, आज रिक्वेस्ट देख कर पुराने जख्म फिर हरे हो गए , मैं अंशिका से मिलना चाहता था,पर दिल ने मना कर दिया, प्रेम तुरंत आशिका की आईडी ब्लॉक कर दी, और आगे जानने की कोई कोशिश ना की..
प्यार का नशा तो 20 साल पहले ही उड़न छू हो गया था,. वह प्यार का कबूतर कहां गया है यह नहीं पता चला जिम्मेदारियों के बोझ तले मैंने आज तक शादी नहीं की और अंशिका को भुला भी ना पाया आज अंशिका को देखकर दिल के दर्द से भरी हो गए मेरा अधूरा इश्क……….

— साधना सिंह स्वप्निल

साधना सिंह "स्वप्निल"

गोरखपुर में मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, मेरी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई है, मैंने एम ए सोशल वर्क से किया है, कंप्यूटर से मैंने डिप्लोमा लिया है