गीतिका/ग़ज़ल

लोग

अंगारों पर चलते लोग।
देख उन्हें भी जलते लोग।
किसको – कितना लाभ हुआ
सोच रहे, जब छलते लोग।
पैसों की पाकर गरमी
हिमखण्डों – से गलते लोग।
नया खिलौना जब देखें
शिशु की भाँति मचलते लोग।
श्रम – उद्यम करने वाले
सदा फूलते – फलते लोग।
ठग, हँसकर ठग लेते हैं
भौचक आँखें मलते लोग।
वादा पूर्ण न जो करते
वही बहुत ही खलते लोग।
कुछ लें जन्म धनी घर में
कुछ अभाव में पलते लोग।
प्रातः आते सूरज – से
सायं होते ढलते लोग।
काम निकल जाने के बाद
प्रायः रंग बदलते लोग।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585