लघुकथा

स्टेपनी

”अमिता, कैसी हो तुम! मैं तुमसे मिलने आ सकता हूं?” मोबाइल पर नीरज का संदेश चमका.
संदेश सामान्य-सा था, पर अमिता का तन-मन उबलने-सा लगा.
”अब मुझसे मिलने की तमन्ना ने जोर मारा है!” अमिता ने अपनी यादों को झटका.
”तब कहां गई थी मुझसे मिलने की तुम्हारी तमन्ना, जब अपनी बहिन की शादी के लिए एक महंगी साड़ी खरीदने जैसी मामूली-सी बात पर तुमने मुझे घर से निकल जाने को कहा था!” अमिता की उदासी बढ़ती जा रही थी.
”यों तो तुम मुझे महान व्यक्तित्व की धनी, सीमातीत, असीमित, श्रेष्ठ, कुशल आदि शब्दों से नवाजते थे और कहते थे कि तुम्हारे दादा जी ने तुम्हारा नाम अमिता सही ही रखा है. जानती हो अमिता का अर्थ होता है अनंत और शाश्वत?”
”तब कहां था तुम्हारा यह ज्ञान, जब मैं दो-चार कपड़े लेकर तुम्हारे सामने तुरंत घर से बाहर निकल गई थी!” उसकी उदासी उदासीनता में तब्दील होती जा रही थी.
”मैं उच्च शिक्षित थी और एक जानी-मानी कंपनी में अच्छे-खासे पद पर नियुक्त थी, पर तुम्हें शादी के बाद मेरे नौकरी करने से ही गुरेज थी. शुक्र है कि मैंने कुछ समय के लिए छुट्टी ले ली थी, इस्तीफा नहीं दिया था. तुम जानते हो कि मेरा ओहदा और वेतन तुमसे अधिक है, इसलिए तुम मुझसे बात करने और मिलने के इच्छुक हो!” उसके मन का गुब्बार बढ़ता जा रहा था.
”यह समझ लो मिस्टर नीरज, औरत का भी अपना वजूद होता है. औरत स्टेपनी नहीं होती, कि जब मर्जी हो उसका उपयोग किया जाए और फिर एक ओर पटक दिया जाए!” अमिता ने नीरज के संदेश के प्रतिउत्तर में संदेश लिखा और अपने काम में लग गई.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244