पुस्तक समीक्षा

प्रवासी साहित्यकार का महत्वपूर्ण ग्रंथ : रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता

मारीशस के हिंदी साहित्यकार रामदेव धुरंधर के रचना-संसार पर आधारित ग्रंथ –‘रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता’,साहित्यभूमि द्वारा प्रकाशित महत्वपूर्ण कृति है l इस पुस्तक में रामदेव धुरंधर की विविध विधाओं जैसे उपन्यास, कहानी, लघुकथा, गद्य क्षणिका, व्यंग्य आदि रचनाओ के अध्ययन एवं उनके साथ बिताये गये समय एवं अनुभवों के आधार पर देश-विदेश के हिंदी विद्वानों, उच्च शिक्षण संस्थान के शिक्षकों एवं अन्य मूर्धन्य साहित्यकारों ने धुरंधर जी की रचनाधर्मिता के गुह्यतम तत्व तक पहुंचने का प्रयास किया है और अपने सार -अनुभवों को आलेखों में पिरोया है जिससे इस प्रवासी साहित्यकार की भाव संवेदना को समझा जा सकता है l
व्यंग्यकार और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरीश नवल ने पुस्तक के लिए अपने दो शब्द ‘कृति आलोचना का गौरव ग्रन्थ’ शीर्षक नाम से देते हुए लिखा है –”रामदेव धुरंधर बड़े साहित्यकार हैं. जिन्होंने अपने साहित्य से जागरण का बिगुल बजाया है. एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक जो निरंतर लिखते हैं और उत्कृष्ट लिखते हैं l” ‘रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता’ पुस्तक में शामिल लेखों में 16 उपन्यास साहित्य पर, 8 कहानी साहित्य पर, 3 नाट्यसाहित्य पर, 5 लघुकथाओं पर और व्यंग्य-गद्य क्षणिका-संस्मरण पर एक-एक आलेख हैं l
जहाँ लता नौवाल का लेख ‘रामदेव धुरंधर का उपन्यास साहित्य’ सभी उपन्यासों का परिचय पाठकों को कराता है वहीं ‘रामदेव धुरंधर के उपन्यासों में मानवीय संवेदना’ नामक आलेख उपन्यासों की कथावस्तु और संवेदना पर आधारित है जिसमें ब्रजेश कुमार यदुवंशी लिखते हैं-“संवेदनशीलता को पिरो कर रचनाकार का धर्म निभाने में धुरंधर ने कोई कोताही नहीं की है l” रामदेव धुरंधर के उपन्यासो-छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, चेहरों का आदमी, बनते बिगड़ते रिश्ते, सहमे हुए सच, तथा महाकाव्यात्मक उपन्यास पथरीला सोना से अनेकों सन्दर्भ को उघृत करते हुए डा यदुवंशी ने धुरंधर जी के उपन्यासो की गंभीर और गहन पडताल करता है l‘ग्राम्य -जीवन की विसंगतियों का सजीव चित्रण : विराट गली के बासिन्दे’ और ‘रामदेव धुरंधर के साहित्य में व्यंग्य का शैली के रूप में प्रयोग’ में लेखकों ने उपन्यास में चित्रित ग्राम्य जीवन की विद्रूपता एवं लाचारी की व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति कौशल की सराहना की है और पाया है कि प्रवासी लेखक धुरंधर ने अपनी कलम से समाज की उपभोक्तावादी संस्कृति में झूठ, फरेब, छल, दगाबाजी, दोमुंहापन, रिश्वत, दलाली, भ्रष्टाचार आदि को व्यंग्यात्मक शैली में उजागर किया है l ‘रामदेव धुरंधर का साहित्य: समाजैतिहासिक दस्तावेज’ आलेख में हरेराम पाठक धुरंधर जी की साहित्य साधना के बारे मे लिखते हैं -“माँ सरस्वती के वरद पुत्र ने अपने दिल की तड़प और बेचैनी की आवाज सुनी, और उस आवाज को शब्दों का रूप देकर उसको जन जन तक पहुंचाने का व्रत लिया l पाठक जी धुरंधर जी के ऐतिहासिक उपन्यास ‘पथरीला सोना’ के संबंध में कहते हैं कि…“पथरीला सोना श्रम शक्ति का महाआख्यान है, कारण इसमे श्रम की पीड़ा नही बल्कि उनके सौंदर्य का अनुलेखन है l इस पुस्तक मे तीन लेख धुरंधर जी के उपन्यास ‘ढलते सूरज की रोशनी’ पर आधारित हैं l आनन्द पाण्डेय ने ‘ढलते सूरज की रोशनी’ को यथार्थ की कथा बताते हुए कहा है –“धुरंधर जी ने अपनी कल्पनाशीलता के आधार पर उपन्यास के प्रत्येक घटना क्रम और पात्रों को वास्तविकता के धरातल पर उतारते हुए, इसे वास्तविक कथा का रूप दिया है l” रामदेव धुरंधर के महाकाव्यात्मक उपन्यास छः खंडीय उपन्यास ‘पथरीला सोना’ पर पाँच आलेख हैंl ‘प्रवासी भारतीयों की अंत:कथा: पथरीला सोना’ में शोधालेखकों ने गंभीर चिंतन-मनन करते हुए उपन्यासकार द्वारा इस कृति में प्रवासी पीड़ा को गहराई के साथ उकेरने की बातस्वीकार की है l ‘पथरीला सोना’ लगभग पौने दो सौ वर्ष पहले भारत के बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि से गिरमिटिया मजदूरों के रूप में पहुचे भारतबंशी मजदूरों की व्यथा कथा का चित्रण करते हुए, इसे उनके इक्कीसवी सदी तक पहुंचने की विकास यात्रा का जीवंत दस्तावेज बताया l इस उपन्यास के सातो खंडों में स्थानीय भाषा और शैली का सामंजस्य रोचकता प्रदान करता है साथ ही धुरंधर जी लोकसाहित्य को जोड़कर उपन्यास को समाज के करीब ला दिया है, प्रयुक्त भोजपुरी गीतों में तत्समय के दुःख सुख, आशा निराशा की पीड़ा को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है …
“देख हो जर गइल दुश्मन के करेजवा
हम आज गावी हो ख़ुशी के गीतवा…
‘पथरीला सोना- श्रम और समर्पण का आलेख’ में डॉ निशा नंदिनी ने उपन्यास को भारतीय मजदूरों के संघर्ष की कहानी बताया है और कहा है कि छः खंडो में समाहित यह उपन्यास बतलाता है कि केवल पत्थरों को पलटने भर से यहाँ की जमीन सोना नही बनी है l भारतीय मजदूरों की हड्डियों से गली राख़ से यहाँ सोना बनाया गया है l पूरा आलेख धुरंधर जी की भावनाओ को दर्शाता है, जहां भारतीय, संस्कृति, जीवन शैली, और भारतीयता की ही बात होती है, धुरंधर की कलम अपनी इस विरासत को छोड़ कर दूर रहना नही चाहती हैl डॉ भगवती प्रसाद निदारिया ने धुरंधर जी के उपन्यास “पूछो इस माटी की वृहद् समीक्षात्मक व्याख्या की है l उपन्यास के हर पहलुओं को बड़े ही नजदीक तक पहुंच कर देखा है l चाहें वह मूसे मानस कोठी की यातना भरी दास्तान हो, या देवरतन की जलाई क्रांति की मशाल हो, पूरे उपन्यास का पात्रवार समीक्षा डा. निदारिया ने अपने इस आलेख में किया है l डा निदारिया की दृष्टि उपन्यास के हर पक्ष को खूब टटोलती हुई प्रतीत होती है l

रामदेव धुरंधर का कहानियाँ भी खूब चर्चित हुई हैं डॉ.सुधांशु शुक्ल मारीशस में जन्मे इस हिंदी साहित्यकार के अंदर से निकल रही भारतीयता की सोंधी महक में खो जाते हैं l उन्हें रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता पर गर्व होता है l वे धुरंधर जी की कहानियों जैसे बंद मुट्ठीयो का खालीपन, जन्म की भूल, दुनियां को चुराने वाले, व्यंग कहानी विमोचन बनाम विमोचड़, सांसत, कुर्सी, अनदेखा, वापसी, अंतर्मन, आदमखोर आदि की संवेदना की गहराई तक जाते हैं और पाते हैं कि धुरंधर जी अपनी कहानियों में समाज के विविध पक्षों को पाठकों के सामने यथार्थ रूप में प्रस्तुत करते हैं l रंजीत पांचाले ने कहानियों पर समीक्षात्मक लेख लिखा है और पाया है कि धुरंधर जी की कहानियों में “देश के विभिन्न वर्गों एवं क्षेत्रों के प्रतिनिधि पात्रों की सोच और उनके क्रिया कलापों के माध्यम से मारिशसीय समाज के विभिन्न आयामों पर गंभीर लेखन किया है l भावना शुक्ला ‘रामदेव धुरंधर की कहानियों में अनभूतिजन्य यथार्थ’ के प्रारम्भ में लिखतीं हैं कि रामदेव के मन में अपने पूर्वजों के प्रति हुए अमानवीय व्यवहार के कारण उपजी संवेदना उनके साहित्य के रूप में उभरती है जहाँ धुरंधर ने यथार्थ को अपनी रचनाओं में पिरोया है l रामदेव धुरंधर ने अपनी कहानियों के माध्यम से नशे की समस्या, वेश्यावृति जैसी सामाजिक विद्रुपता, की तरफ पाठकों का ध्यान खींचा है l सविता तिवारी मॉरिशस में रहते हुए धुरंधर जी की कहानियों में अभिव्यक्त देश की समसामयिकता के यथार्थ को देखती हैं और रचनाकार को सच्चा समाज चिंतक बताती हैं l डॉ असगर हुसैन खान ने भी इन कहानियो के सन्दर्भ में बड़ी सुन्दर विवेचना की है और आलेख में कहानियों के हर एक माइल स्टोन तक पहुंचने की कोशिश की है.. चाहें कथा साहित्य में कथावस्तु, माँ की करुणा तथा ममत्व, नेताओं की पद लोलुपता और विषाद, आदि अनेकों अनेक विषयों पर धुरंधर जी की पकड़ को पकड़ा है l
रामदेव धुरंधर लघुकथा लेखन में महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं उन्होंने लगभग 5000 लघुकथाओं का सृजन किया है .लघुकथाओं के आलोक में डॉ दीपक पाण्डेय, रामबहादुर मिश्र, प्रो. पदमा पाटिल, डॉ. अमिता दुबे, राजेश सिंह ने अपने आलेखों से धुरंधर जी की लघुकथाओ में अभिव्यक्त विविध रंगों को समझने की कोशिश की है l दीपक पाण्डेय ने अपने आलेख ‘रामदेव धुरंधर की लघुकथाओं का वैशिष्ट्य’ में रामदेव धुरंधर के लेखकीय कौशल और अभिव्यक्ति कला की सराहना की है | वे लिखते हैं कि धुरंधर जी की लघुकथाएं देखन में छोटी लगें घाव करें गंभीर की भावना के प्रतिपाद्य को प्रस्तुत करती हैं l “रामदेव धुरंधर की लघुकथाएं गंभीर विश्लेषण की मांग करती हैं और इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं कि साहित्यकार ने अपने आसपास की घटनाओं/ परिस्थितियों के नेपथ्य में विसंगतियों, कुरूपताओं,असंवेदनशीलता को गहराई से समाज के सामने रखती हैं l ” अवधी साहित्य के शलाका पुरुष रामबहादुर मिश्र धुरंधर जी की अनेक लघुकथाओं के संबंध में लिखते हैं कि धुरंधर जी की लघुकथाएं मानव मूल्यों, पौराणिक और मिथकीय संदर्भों और अवधी लोक कथाओं के इर्द गिर्द घूमती हैं l
प्रो. पदमा पाटिल, धुरंधर जी की लघुकथाओ को सूक्ष्म रूप से लेकिन गहराई टटोलते हुए, लिखती हैं-“मानव जीवन के हर पहलू सही-गलत, अच्छा-बुरा, सुन्दर-विरुप, विविध भाव-संवेदनाओ को धुरंधर ने अंत:स्थल में स्वीकारते हुए, उन्हें अपनी लघुकथाओं द्वारा समाज के सामने रखा है l” अमिता दुबे, आलेख में धुरंधर जी की लघुकथाओं के साथ यात्रा करती है, और धुरंधर जी की लघुकथाओं को मानव संवेदना के साथ, विद्रुपताओं, मानव मन की गांठों को खोलने वाली बताती हैं l राजेश सिंह ‘रामदेव का लघुकथा साहित्य’ में लिखते हैं कि धुरंधर जी जब लघुकथा लिखते हैं तो लगता है कि उसमें समाते जा रहे हों और जैसे जैसे पाठक इसकी गहराई तक जाता है तो उसे लगता है कि उसकी आँखों के सामने ही सारा घटनाक्रम चल रहा हो l
व्यंग्य लेखन में भी रामदेव धुरंधर ने अपनी पहचान बनाई है l धुरंधर ने उपन्यास,कहानी,लघुकथाओं सभी में व्यंग्यात्मक शैली का भी धारदार प्रयोग किया है l धुरंधर जी के मित्र और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शंकर लाल शर्मा ‘क्षेम’ लिखते हैं कि धुरंधर जी के उपन्यास, कहानी के पात्रों के चरित्र में व्यंग्य छिपा रहता है l आलोचक रमेश तिवारी ने ‘व्यंग्य की दहलीज पर:रामदेव धुरंधर का व्यंग्य लेखन’ में धुरंधर जी के दो व्यंग्य संग्रहों ‘बन्दे आगे भी देख’ और ‘कपड़ा जब उतरता है’ का आलोचनात्मक विश्लेषण किया है l
रामदेव धुरंधर मारीशस के ऐसे नाटककार हैं जिनके नाटकों का लगातार 10 वर्षों तक मॉरीशस रेडियों में प्रसारण हुआ l उमाकांत खुबालकर लेख ‘रामदेव धुरंधर की नाट्यकला’ में धुरंधर जी के नाट्य साहित्य के कई नाटकों जैसे आत्मन, आत्मा, हंगामा देवी, पैसे का चक्कर, जलती मशाल आदि की गहरी जांच-पड़ताल करते हैं और कहते हैं कि रंगमंच की सभी सीमाओं पर ये नाटक खरे उतरते हैं . राम प्रकाश यादव धुरंधर जी के नाटक ‘आत्मन्’ की सुन्दर विस्तृत व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि यह नाटक अपने में शोषण और कुव्यवस्था के अनेक पहलुओं को समेटे है और वे समाज रूपी रंगमंच के सामने उनकी ही कहानी कहते हैं lकुसुमलता सिंह अपने आलेख “नाट्य की विषयवस्तु और अभिव्यक्ति” में साधारण संतुलन के माध्यम से धुरंधर के तीन नाटकों आत्मन्, पैसे का चक्कर, जलती रहे मशाल तथा एकांकी सिगरेट का टुकड़ा का सुन्दर विश्लेषण करती हैं l
अनुपमा तिवारी अपने आलेख में धुरंधर जी के संस्मरण लेखों की विशेषताओं को उजागर करते हुए लिखती हैं कि “रामदेव धुरंधर ने अपने संस्मरणात्मक लेखों में संस्मरण के पांच तत्व सत्यात्मकता, भाव, प्रवणता, चित्रोपमता, जीवन खंड विशेष, तथा व्यक्ति विशेष सभी तथ्यों को सफलता पूर्वक समेटा है l’
हिंदी में गद्य-क्षणिका की परंपरा शुरू करने का श्रेय मॉरिशस लेखक रामदेव धुरंधर को देते हुए डॉ. नूतन पाण्डेय अपने आलेख ‘गद्य क्षणिका :रामदेव धुरंधर का अभिनव साहित्यिक प्रयोग’ में धुरंधर की गद्य-क्षणिकाओं का गंभीर विशलेषण प्रस्तुत करती हैं. वे लिखती हैं-“रामदेव धुरंधर की दृष्टि जहाँ जा सकती है उन सब विषयों को उन्होंने अपनी क्षणिकाओं का आधार बनाया है- अपने समाज में व्याप्त विसंगतियों और तद्जन्य प्रभावों को वे बड़ी ही सहजता से अपनी छोटी-छोटी गद्य क्षणिकाओं के माध्यम से बेबाकी से उठाते हैं, न केवल उठाकर चुप हो जाते हैं बल्कि अपने पाठकों को उनसे उत्पन्न खतरों के प्रति जागरूक भी करते हैं, उनकी संभावित विभीषिकाओं से उन्हें आगाह भी करते हैं –इस प्रकार वे अपनी साहित्यिक प्रतिबद्धता को ईमानदारी से निभाने का हरसंभव प्रयास करते हैं l”
मॉरिशस के हिंदी साहित्यकार रामदेव धुरंधर के गंभीर लेखन को समझने में यह एकमात्र पुस्तक है l पुस्तक जहाँ धुरंधर जी के गंभीर हिंदी लेखन का परिचय कराती है वहीं मॉरिशस हिंदी साहित्यकार धुरंधर जी के साहित्य पर मूर्धन्य विद्वानो द्वारा समीक्षात्मक, आलोचनात्मक, शोधपरक शैली का भी दरस कराती है l रामदेव धुरंधर के साहित्यिक अवदान को समझने एवं मॉरिशस-हिंदी साहित्य पर अनुसंधान कार्य में यह पुस्तक निश्चित ही उपयोगी सिद्ध होगी l पुस्तक के संपादक द्वय डॉ नूतन पाण्डेय और डॉ दीपक पाण्डेय इस महनीय कार्य के लिए साधुवाद के पात्र हैं l

राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
कवि, लेखक एवं समीक्षक
लखनऊ /बलिया
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