कविता

झगड़ने का गणित

1.
झगड़ना हमारे बीच वैसा ही है
जैसे कभी सब्ज़ी में मिर्चें ज़्यादा हो जाना
या उबलते हुए दूध का बिखर जाना
ट्रेन की खिड़की से झाँकते हुए
आँख में किरकिराहट आ जाना
या किसी अनजान कारण से
ट्रेन का निर्जन में अचानक ठहर जाना
पतझड़ से पहले किसी तेज़ आँधी का आना
और उस में किसी गरीब आदमी की झौंपड़ी से
जंग खाई, पुरानी टीन का उड़ जाना।
2.
हमारी मित्रता में
लाइट हाउस पर जलने वाली बत्ती का स्विच
उसके कब्ज़े में है
हमारी मित्रता में
उसे अधिकार है कि वह जब चाहे
मेरी नाव को लंगर देने से मना कर दे
हमारी मित्रता में
समुद्र का ज्वार भाटा
उसके आँसू तय करते हैं
हमारी मित्रता में
जो भी हमारा है,
बस उसका ही है।
3.
बरसात से पहले
यहाँ ज़ोर से हँसती है बिजली
बरसात से पहले
यहाँ बादलों में भरा जल
बदल जाता है तीखे शब्दों में
बरसात से पहले
टपकने लगती है
कच्ची-पक्की छत
मेरे दिमाग की
बरसात से पहले
वह अक्सर सुनाती है मुझे
अपने पहले असम्भव प्रेम की
सम्भव कहानी
बरसात से पहले
मैं जल चुका होता हूँ
टोस्टर में फँसी
किसी स्लाइस की तरह
बरसात से पहले
वह अक्सर कहती है
उसे बरसात में भीगना अच्छा लगता है!
4.
झगड़ने के बाद
हम दोनों ही जागते हैं रात भर
अपने आपको सज़ा देते हुए
सुबह वह कहती है, तुम समझते क्यों नहीं
मुझे नहीं चाहिए ज़रा-सी भी सहानुभूति
मत रखो मेरा इतना ध्यान
बुरा लगता है मुझे
मैं जानता हूँ
साँस लेने की विवशता और
समानुभूति को समझाया नहीं जा सकता
जैसे कोई स्त्री नाराज़गी में भी
छुपा नहीं पाती अपने भीतर उमड़ता प्रेम
सुनेत्रा,
झगड़ते तो हम इसलिए हैं कि
बिगड़ने न पाए धरती की जलवायु
और अंतरिक्ष का संतुलन
जिसे अपने हाथों में थामे हैं,
हम दोनों;
धरती के सारे स्त्री-पुरुष।
———– राजेश्वर वशिष्ठ