कविता

बसंत आ रहा…

हौले-हौले से आ रहा
धीरे-धीरे से छा रहा
कायनात का जर्रा- जर्रा
महक उठा- चहक उठा
बसंत आ रहा…
मौसम करवट बदल रहा
मंद-मंद खुशबू फैला रहा
खिल उठा सबका हृदय
नई उमंग- नई तरंग
बसंत आ रहा…
धरा सुंदर स्वर्ग बन रही
ऋतुओं की रानी आ रही
करो सब जन अभिवादन
यौवन नवल- मन चंचल
बसंत आ रहा…
कली -कली खिल रही
खगों की ध्वनि गूंज रही
मां शारदे को कोटिश: नमन
आता फाग- लाता दाग
बसंत आ रहा…
फूलों पे भंवरे मंडरा रहे
पराग शायद चुरा रहे
कुदरत बनी सुरम्य
मीठी छुअन-पीला परिधान
बसंत आ रहा…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111