लघुकथा

रोटी

” भाभी एक बात कहूँ …” राधा फर्श बुहारते हुए नेहा से बोली।
“हाँ बोल…”
“वो वो..”
“अरे बोल तो”
वो ना…मेरा मर्द कह रहा है कि एक लड़का और पैदा कर लेवे ,कभी राजू हमें बुढापे में रोटी ही न देवे”
“पागल है … तीन बच्चों में तो ढंग से गुजारा हो नही हो पाता तेरा .. एक और कर ले” नेहा तीव्र स्वर में बोली
” मुझे तो अपने आदमी की बात ढंग की लग रही है … आज कल यही सुनने में आ रहा है लड़के बुढ़ापे में रोटी न देवे है..” राधा बोली
” किसने कहा ?… एक दो ऐसे निकल गए सब ऐसे ही हो जाएंगे …बहुत दूर की सोची तुम दोनो ने तो.. क्या गारंटी है अगली बार लड़का ही होगा …मान ले अगर हुआ भी और उसने भी रोटी न दी तो क्या करोगे ? पहले इन तीनों की रोटी की चिंता कर, आज दो रोटी खाते है कल तीन और परसो चार खायेंगे … फिर एक सदस्य और बढ़ने से इन तीनों और तेरी थाली की रोटी कम होगी न कि तेरे मर्द की ..वो तो तेरी कमाई पर पलता है अपनी तो शराब में ही उड़ाता है … मेरे भी तो एक ही बेटा है और जिनके पास सिर्फ बेटी है वो भूखे मर जायेंगे क्या”
राधा चुप हो गयी।
“ऐसी बातों पर ध्यान न दिया कर…रोटी खिलाने के लिये एक ही काफी है ,जिनके चार है वो भी तरस रहे है रोटी के लिए… तेरा पति तो है ही नशेड़ी कुछ भी बक देता है …जरा सी देर हो जाये घर पहुँचने में तो, तेरा भी एक यार पैदा कर देता है। इन्ही तीनों को पाल-पोस ,पढ़ा लिखा …।”
“सही कही तुमने, मैं ना मानने वाली उसकी बात…”
नेहा को प्रतीत हो रहा था राधा खुश हो कर आज फर्श खूब चमका रही है।

— दीप्ति सिंह

दीप्ति सिंह

बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)