कविता

पर्व पावन मकर संक्रांति !

पर्व पावन मकर संक्रांति !
पर्व पावन हैं मकरसंक्रांति,
सूरज भगवान की करे भक्ति,
पूजा, अर्चना, आराधना भावे,
प्रभु परमात्मा के आशिष पावे।
तिल गुड़ की मिठास हो मन में,
प्रेम भाईचारा रहे जीवन में,
धीरे धीरे ठिठुरन जाएगी,
रविकिरणें ऊष्मा ले आएगी।
गंगा स्नान का महत्व अनन्य,
दानधर्म कर करे पुण्य संचय,
सूर्योपासना से ऊर्जा संचार,
धन्य, धान्य से भरा भरा घरद्वार।
वाणी मीठी मीठी मधुरिम हो,
मनभावन प्यारी बोली हो,
दुखाये न दिल किसी का,
त्यौहार हैं मेल मिलाप का।
ऊंची ऊंची उड़े पतंग,
देखो, नभ को छूती पतंग,
डोर से जुड़ी रहे सदा,
एकता में हैं सुख संपदा।
त्यौहार मनाये धूमधाम से,
भूले बिसरे मीठे रिश्तों से,
खट्टी-मीठी, नोंक झोंक से,
नवउर्जा सिंचन हो नेह से।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८