धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मकर संक्रांति

मकर सक्रांति पूरे भारतवर्ष में 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। हिंदू/ सनातन धर्म में अधिकांशतः मनाया जाने वाला यह पर्व/त्योहार प्रकृति से जोड़ता हैं, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपनी जब गति बदलते हैं या यूँ कहें कि जब सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं तब उस दिवस को मकर संक्रांति मनायी जाती है।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य आधारित मकर सक्रांति को हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। यह अलग बात है भारत के अलग अलग राज्यों में मकर सक्रांति को अलग अलग नाम से मनाते हैं। जैसे गुजरात में उत्तरायण, राजस्थान, बिहार, झारखंड में सक्रांति,असम में बिहू पंजाब हरियाणा में लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल नाम से जाना जाता है।
हिंदू धर्म में महीने की दो पक्ष होते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। वैसे ही वर्ष के भी दो भाग होते हैं एक उत्तरायण और दक्षिणायन ।दोनों अयन को मिलाकर एक वर्ष पूर्ण होता है। इसे खगोलीय घटना क्रम से भी जोड़कर देखा जाता है।जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब इसे मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाने के साथ युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी ।मकर सक्रांति बुराई और नकारात्मकता को मिटाने कापर्व है। आज के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।भारत भर अपनी परंपराओं, मान्यताओं के अनुसार यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य देव एक महीने के लिए अपने पुत्र शनि देव के यहां जाते हैं ,यह पिता और पुत्र का बहुत सुंदर रिश्ता है और सक्रांति के दिन  दान पुण्य करने का बहुत ही महत्व है। इसमें खिचड़ी तो बहुत ही महत्वपूर्ण है ।मकर सक्रांति के दिन दान पुण्य करने से सैकड़ों गुणा फल की प्राप्ति होने की भी अवधारणा है।तिल गुड़ मिश्रित लड्डू बनाकर बांटे जाते हैं, खाये जाते हैं। क्योंकि आज के दिन तिल का भी अपना बहुत महत्व है। निर्धन, असहाय, निराश्रितों को उनको खाने पीने की वस्तुएं, कंबल,तिल के लड्डू आदि दिए जाने की परंपरा को पुण्य से जोड़कर देखा जाता है।
आज सुहाग का सामान, नए कपड़े देना और गाय को गुड़ के साथ घास भी खिलाने को भी सकारात्मकता से जोड़कर देखा जाता है ।

    आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर होने के कारण गंगा सहित अन्य नदियों, सरोवरों में स्नान के बाद दान का अपना विशेष महत्व है।
उत्तरायण में ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण स्वेच्छा से त्यागे थे।
ऐसी भी मान्यता है कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं जन्म मरण के चक्र से या तो तो मुक्त हो जाती हैं या कुछ काल, अवधि के लिए ही सही देवलोक अवश्य जाती है।
सबसे विशेष तथ्य यह है कि मकर संक्रांति ऐसा पर्व है कि जो पूरे देश में एक ही दिन मनाया जाता है।भले ही उसके नाम, मान्यताएं, परंपराएं अलग अलग हो, परंतु महत्व एक सा ही है।
मकर सक्रांति पर्व की असीम हार्दिक बधाइयाँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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