हास्य व्यंग्य

राशनकार्ड का पंचनामा

गांव के लालजी साहू को डी सी जनता दरबार में उपस्थित होने को कहा गया था । आज ही सुबह दस बजे ! परसों ग्राम सेवक ने गाजोडीह के जिन पांच लोगों को डी सी के जनता दरबार में शामिल होने के लिए पत्र दे गया था उनमें लालजी साहू भी एक था ।किस कारण बुलाया जा रहा है । पत्र में इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं था ।
” जनता दरबार में आप अवश्य पधारें ” ऐसा लिखा हुआ जरूर था ।
अभी तक लालजी साहू का जीवन विधायक -मंत्री के इर्द-गिर्द घूमता रहा है । उठना बैठना खाना-पीना होता रहा है । पहली बार जनता दरबार में डी सी, सी ओ, बी डी ओ, के साथ बैठने का मौका मिलने जा रहा था । कम बड़ी बात नहीं थी । उसके मन में ख्याल आया था ।जरूर कोई बड़ी बात होगी । सोचा था उसने ।
जब कभी भी अपने पन्द्रह बरस पीछे की जिंदगी को याद करता है तो वे लोग अक्सर याद आ जाते है जिनके बलबूते वह यहां तक पहुंचा है । फिर लालजी साहू अपनी तरक्की भरे जीवन को याद करने लगा था । कहां से और कौन सा जुगाड लेकर चला था और आज किस मुकाम पर आकर खड़ा है ! दस बरस पहले वह दस टके का आदमी नहीं था । गांव पंचायत में उसकी अपनी कोई पहचान नहीं थी । कोई भाव नहीं देता था । बेकारो-नकारों का कोई भाव होता भी नहीं है ।
एक दिन किसी के कहे पर लालजी साहू मेरे आफिस में चले आया । मैंने पूछा क्या हुआ, किसी परेशानी में हो ?
” मुझे सिविल में छोटा-मोटा कोई काम दिला दीजिए!”
” कर सकोगे ? भाग तो नहीं जाओगे ? ठाकुर को लगा दिया था,टिक नहीं सका भाग खड़ा हुआ ! ”
” आपके नाम को मजाक बनने नहीं दूंगा …!”
दूसरे दिन आने को बोला । आया, काम मिला चार हजार का ! आफिस कैम्पस के ” बुस- कटिंग” का, झाड़ी कटाई का. सप्ताह दिन में काम कर दिखाया । दूसरा काम मिला नाली सफाई का । वो भी उसने चार दिन में करवा दिया । मैंने पीठ थपथपाई और कहा -” आगे करते जाओ, अब मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी ..!”
” नहीं दादा ! आपका आशीर्वाद हमेशा चाहिए ..!”
” ठीक है लगे रहो…!”
साल भर में छोटा बड़ा मिला कर सात काम किया उसने और एक बाईक खरीद ली। मुझे लगा लड़के ने राह पकड़ ली । तभी एक दिन सुबह सुबह सुना कि मुलुकचंद बरनवाल की बेटी तारा को लेकर कहीं गायब हो गया !मैं माथा पकड़ लिया -” ससुरा यह भी नहीं सुधरेगा ।” फिर शाम को सुना कि किसी मंदिर में शादी कर दोनों घर लौट आए हैं और ये कि उसने मोटरसाइकिल में तारा को बिठाकर पूरे गांव का एक चक्कर लगाकर अपने घर में ले घूसा …! लड़की राजी फिर क्या करे बाप ? बालिग लड़की ठहरी । बाप गठरी बन घर में बैठ गया ।
‘” लम्बी रेस का घोड़ा निकलेगा ..!” मेरा आकलन था. आज दो ट्रक एक स्कॉरपियो का मालिक बन बैठा था
उसी लालजी साहू को आज अचानक डी सी जनता दरबार में उपस्थित होने वाले पत्र से उसे फूले नहीं समा रहा था । खैर !
इतना आदर भाव से बुलाने पर तो गधा भी गदगद हो जायेगा । लालजी साहू तो राज्य के मंत्री के साथ उठने बैठने वाला आदमी था -गधा नहीं । पत्र पाकर वह कुछ ज्यादा ही गदगद हो गया था । और जब आदमी किसी बात पर ज्यदा गदगद हो जाता है तो उसे बहुत गुदगुदी होने लगती है । तब वह हर बात को पका-फूला कर कहना शुरू कर देता है । लालजी साहू को भी डी सी वाले पत्र से बड़ी गुदगुदी होने लगी थी जिस किसी से मिलता जनता दरबार वाली बात शुरू कर देता ” अब सरकार भी खोज पुछाड करने लगी है ”
” भाई सरकार तो आप जैसे बड़े लोगों का ही होता है -ख्याल तो रखेगा ही ।” कोई कहता ।
” अब आगे नेता बनना पक्का है आपका…! ” कोई जोड़ देता ।
गुदगदाते मन लिए सुबह सुबह वह गांव के अपने घनिष्ठ मित्र धनीराम महतो के घर जा रहा था । पता चला डी सी दरबार में उपस्थित होने को उसे भी पत्र मिला है । इसके पहले घर से निकला तो रास्ते में कई लोग मिले । डी सी दरबार में जाने की बात उठी तो लोग भी कहते मिले-” मंत्री के साथ रहने का फायदा हो रहा है ”
” अब बड़े लोगों की गिनती में आ गया है भाई !” किसी के मुंह से निकला
” हम छूछों को कौन पूछेगा..!” कोई कुंकुआ उठता
” मंत्री मेहरबान तो हर जगह मिले मान सम्मान !”
मोड़ पर सुदन महतो की विधवा पत्नी सुखमुनी महतवाईन भेंट गई । साल भर से विधवा पेंशन को लेकर मुखिया से लेकर बी डी ओ के आगे दौड़ लगा लगा के थक चुकी थी । पर अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है ।
” कहां जा रही है काकी…?” लालजी साहू ने टोका था।
” हमर पेंशनवा कहां पास भेल है बाबू ! सुन लिये, जिला के बड़का साहब आयल है-वहीं जा हिये ..!”
” ठीक है जा – हमहूं आओ हियो !”
” तोरो पेंशन पास करवे के हो की…!”
” नाय काकी …!”
हंसता बुझता लालजी साहू पहुंचा धनीराम के घर ।
पन्द्रह साल पहले धनीराम पैदा नहीं हुआ था । गांव में लोग उसे तब चमन महतो के नाम से जानते थे । एकदम बेकार ! निकम्मा और आवारा के रूप ! तभी उसने एक ऐसा करनामा कर डाला जिससे रातों-रात वह गांव में धनीराम महतो बन गया ।
गांव में दौलत राम महतो नाम का एक धनी किसान था । उसकी इकलौती बेटी बड़ी चंचल और चुलबुली लड़की थी । चमन ने उसे कायदे से चोकलेट और पावरोटी खिला खिला कर पटाया और एक दिन सीधे रजरप्पा ले उडा मंदिर में जाकर शादी कर ली और दौलत राम महतो का घर जमाई दामाद बन गया । गोतियारों ने हंगामा खुब किया पर कुछ काम न आया । एक दिन अपने बीए पास सभी प्रमाण पत्रों को चू.मकर चमन ने जला डाला जिससे वह गांव में बेरोजगार और बेकार-निकम्मा कहलाता था ।
दूसरे दिन चमन कोर्ट गया और अपना नाम बदलने का घोषणा शपथ पत्र में धनीराम महतो और बाप भी बदल डाला ” दौलत राम महतो ” कर चला आया था ।
आज दो मंजिला पक्के मकान में रहता है । एक ट्रेक्टर एक बोलेरो गाड़ी का मालिक तो है ही सालों भर इंट का कारोबार चलता रहता है ।
” जनता दरबार में हमनी के काहे बुलाया गया है कुछ पता चला..?” लालजी साहू को घर आया देख, धनीराम ने पूछ बैठा
” चलके देखिए लेते हैं न ” लालजी साहू बोला-” सुना जयालाल को भी बुलाया है, चलो उसे भी साथे ले चलते है …!”
” कुछ खाया भी या ऐसे ही चल दिया, रूको सुजी भुंजवाते है तब तक हम झाड़ा फिर आते हैं…!”
” तोर इ आदत नाय सुधरतो…!”
थोड़ी देर बाद दोनों जयालाल के घर पहुंचा । पता चला,वो घर से जनता दरबार जाने के लिए निकल चुका है ।
स्कूल मैदान में दूर से ही सरकारी तामझाम नजर आ रहा था । माइक से बार बार जगह लेकर लोगों को बैठने को कहा जा रहा था । जयालाल मंच के नीचे सामने कुर्सी पर बैठा नजर आ गया । दोनों उसी दिशा में आगे बढ़ गये थे । तभी मंच संचालक ने लालजी साहू, धनीराम महतो और जयालाल को सादर मंच में आकर आसन ग्रहण करने को कहा । वे तीनों एक दूसरे को देखने लगे ‌। लालजी साहू के मुंह से निकला-” कहीं बकरा तो नहीं बनाया जा रहा है यार…!” कह तीनों मंच की ओर बढ़ गये थे ।
” मुझे तो कुछ गडबड लग रहा है !” जयालाल बोला
” किसी का कुछ लूटा ही नहीं तो डर किस बात का…?” धनीराम महतो को अपने पर पूर्ण भरोसा था । डी सी साहब मंच पर विराजमान थे । बी डी ओ-सी ओ, पेंशन धारियों और राशनकार्ड वालों की शिकायतों का निपटारा करने में लगे हुए थे । लोग कतारबद्ध एक एक कर आगे बढ़ रहे थे। उन्ही लोगों के बगल से वे तीनों मंच की ओर बढ़े थे । एक दूसरे को कोंचते-ठेलते हुए सा ! जो लोग बेखौफ ! बेरोक टोक और धड़ल्ले से मंत्री जी के घर में घुस जाते थे । आज डी सी के मंच पर चढ़ने से उनकी छाती धाड धाड बज रही थीं । यह होता है अफसर का रूतबा ! मंत्री जी का मंच होता तो यही तीनों अब तक कुर्सी खींच मंत्री जी से सटकर बैठने की आपाधापी करते नजर आते। आज मंत्री जी नहीं है तो मंच पर चढ़ने से ही तीनों की हिचकी चढ़ गई थीं ।
मंच संचालक ने तीनों को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो झप झप तीनों बैठ अपनी अपनी बेकाबू सांसों को शांत करने में लग गए थे । परन्तु शंकाओं ने उन्हें घेर लिया था । बैठे बैठे लालजी साहू ने कहा था-” सुबह से ही मेरी बांयी आंख बहुत फडक रही है !”
उतर में धनीराम महतो ने कहा-” और मेरे बांये पैर में सुबह से ही खुजली हो रही है !”
” लगता है हम तीनों आज बुरे फंसे….!” जयालाल ने मुंडी झुका कर कहा था ।
जन सुनवाई के तुरंत बाद ही डी सी साहब माइक पकड़ लिये थे -” हेलो ! आप सभी माता एवं बहनों को मेरा पुनः नमस्कार-पणाम ! जनता दरबार के इस जन सुनवाई में आज जिन लोगों का काम हुआ उनसे बस इतना ही कहना है कि आप अपने मांगों और कामों को लेकर इसी तरह जागरूक रहें । और जिन लोगों का कुछ खामियों की वजह से आज काम नहीं हो सका । वे निराश नहीं होएं । आपका काम भी सप्ताह दिन में हो जाएगा, मैं बी डी ओ, साहब को निर्देश देकर जा रहा हूं । वृद्धा पेंशन,आवास, और राशनकार्ड के मामले में हम लापरवाही या धांधली बर्दाश्त नहीं करेंगे…!” डी सी साहब थोड़ा रूकते हुए बोले-” आप लोगों से आग्रह है दस मिनट तक शांति बनाए रखें, अभी आप लोगों को,आप ही के बीच के कुछ बड़े लोगों से मिलवाते हैं !” डी सी साहब ने बी डी ओ साहब को कुछ इशारा किये । बी डी ओ साहब हाथ में माला लेकर खड़े हो गए थे ।
” आप इनसे मिलीए ! लालजी साहू जी से, आप इन्हें अच्छी तरह से जानते पहचानते होंगे,आप ही के बीच पले बढ़े हैं-सामने आइए लालजी जी !” लालजी साहू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । आज उसके जीवन के साथ क्या हो रहा है ? अवाक ! हैरान ! किंकर्तव्यविमूढ़ स्तब्ध सा आगे बढा था । ज्योंहि वह डी सी साहब के सामने आकर खड़ा हुआ । बी डी ओ साहब माला पहनाकर उसका स्वागत किये, तब डी सी साहब फिर बोले-” लालजी साहू का जीवन में इतना आगे बढ़ना, आज बड़े आदमी के रूप जाने जाना,। बड़ी बात है । और जब बड़े लोगों में गिनती होने लगे तो आदमी को छोटा काम खुद छोड़ देना चाहिए, इसी में बड़प्पन है । अब मैं लालजी साहू जी से कहूंगा कि यह अपना राशनकार्ड सरकार को वापस कर दें….!”
” लेकिन सर…!” लालजी साहू कुछ कहना चाहा तो बीच में ही डी सी साहब ने टोक दिया-” मुझे मालूम है आपका राशनकार्ड आपके पास नहीं है, आपने अपना राशनकार्ड दुखिया तुरी को दे रखा है,बदले में दुखिया तुरी की पत्नी आपके घर के सारे काम कर देती है- आई एम राइट लालजी साहू जी..!”
लालजी साहू के मुंह से शब्द न निकल सका ।
अब बारी था धनीराम महतो का । उसे देख लग रहा था । जैसे उसका मन मंच से कूद जाने को कर रहा हो । तभी डी सी साहब बोल उठे-” मैं समझ सकता हूं धनीराम महतो जी इस वक्त क्या सोच रहे हैं ! आप भी यहां पधारें ! ”
” नहीं सर मैं यहीं ठीक हूं …!” लोग हंस पड़े ।
” धनीराम महतो जी का राशनकार्ड…!”
इस बार धनीराम महतो बीच में बोल उठा-
” सर ! राज की बात राज ही रहने दीजिए न..! मैं दस मिनट में राशनकार्ड लेकर आता हूं..! ” इतना कह धनीराम महतो सचमुच मंच से कूद पड़ा था ।
इसी बीच जयालाल उठ खड़ा होता दिखा !
” आप कहां चले जयालाल जी.. रूकिए…?”
” सर ! आज आप हम सबों का कुण्डली बना कर आएं हैं..जा रहा हूं राशनकार्ड लाने….!”
इस बार सारे लोग ठहाका लगा हंस पड़े थे..!
डी सी साहब भी मुस्कुराये बन रह न सके !
सुखमुनी महतवाईन आज गदगद थी । उसका पेंशन पास हो गया था !!

— श्यामल बिहारी महतो

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय