कविता

मन का डोर

आज फिर मन
पुरानी यादों के घेरे में जकड़ा है
स्मृतियों में जीवंत हो उठी
वो प्यार के तमाम लम्हें…..

जिसमें हमदोनों के जज्बात संयुक्त हुए थे
तुम्हारे बेहद करीब की उपस्थिति
देह के सानिध्य से उत्पन्न वो मनमोहक सुगंध

आज भी मेरी सांसों को महकाती है
दिल की चाहत में तुम्हारा ही जिक्र है
वो एहसास जो तुमने मुझे दिए थे
प्रेम बनकर मेरे अन्तस् में बह रही है

मेरे भीतर की अनन्त क्रियाएं
तरंगित हो उठती है मात्र तुम्हारे स्मरण से
हां ! तुम्हारे प्रेम से अभिभूत मैं प्रेम हो गई हूं।

*बबली सिन्हा

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