लघुकथा

सीख

रात के आठ बज रहे थे तभी कॉलबेल बजी, आरती दरवाजा खोलने गई….अरे वाह! आज तो जल्दी आ गए, मुझे तो लगा कि आज भी नौ बजेंगे….
चलिए कोई न! आप फ्रेश हो लीजिए, मैं आपके लिए लेमन टी बनाती हूं। ऐसा कहकर आरती किचन में चली गई, अजय फ्रेश होकर सोफे पर बैठ टीवी पे न्यूज लगा दिए। तबतक बेटा रौनक जो नौंवी का छात्र है पापा के पास आकर बैठ गया।
कुछ मिनट बाद मैं भी चाय की ट्रे के साथ वहां आ पहुंची‌। हम गपशप और चाय का आनन्द ही ले रहे थे, तभी टीवी के न्यूज ने बढ़ते कोरोना और ओमीक्रोन की खबर से डरा दिया। मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया… अरे बाबा!” कोरोना ने तो फिर से अपना कहर बरसाना शुरू कर दिया, उसपर से एक नई बीमारी ओमीक्रोन का खतरा। ओह! हमें फिर से पहले जैसी ही सावधानी अपनानी होगी। इन दिनों हम सब ने लापरवाही शुरू कर दी है।
बेटा रौनक सब सुन रहा था, पर कुछ बोल नहीं रहा था। तभी मेरी नजर उसपर गई। मैंने कहा- तुम्हें क्या हुआ?
तब उसने खीज़ते हुए कहा – मम्मा आप तो कुछ बोलो ही मत.. और हाँ, आपको कोई डर-वर नहीं लगता। अगर ऐसा होता तो परसो पार्टी में जाते वक्त आप मास्क जरूर लगाते…. लेकिन मेरे इतना बोलने के बाद भी आपने मुझे ये डांटकर चुप करा दिया कि पार्टी में अगर मास्क पहनूँगी तो सब मजाक बनायेगे कि सबसे ज्यादा इन्हें ही कोरोना का डर सता रहा…. मम्मा आपको औरों की नहीं बल्कि अपनी परवाह करनी चाहिए थी।
इतनी भीड़-भाड़ में मास्क न लगाना सीधे-सीधे बीमारी को आमंत्रण देना है। खैर, आपको तो मेरी बात समझनी ही नहीं है और अब आप कह रहे हो कि डर लग रहा… उफ! बेटे की बात सुन मैं स्तब्ध हो गई। अजय भी वही बैठे बेटे की सारी बाते सुन रहे थे, पर कुछ बोल न सके। क्योंकि उस दिन उन्होंने भी कहा था.. अरे एक दिन मास्क न लगाने से कुछ नहीं होता।
मैं अंदर ही अंदर सोचने लगी ओह, कितना कष्टकारी था वो दिन.. जब अजय को कोरोना ने घेर लिया था और आस-पास ऐसा कोई आदमी नज़र मे नहीं था जिसकी मदद ली जा सके, कितना परेशान और घबराहट वाले वो दिन थे। सब कुछ अकेले ही मैंने ईश्वर के दिए हिम्मत और हौसले के बदौलत सहा था। हे ईश्वर! अब कभी ऐसे दुख भरे दिन मत दिखाना।
फिर, खुद को संभालते हुए मैंने बेटे से सॉरी बोला, तुम सही कह रहे हो। अब से ये गलती नहीं होगी। मैं इतनी बड़ी लापरवाही कर रही थी जिसे सोच कर भी मन घबड़ा-सा जाता है। बेटा समय रहते तुमने मेरी आँखें खोल दी।

*बबली सिन्हा

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