कविता

गुलाब और कांटे

जहां गुलाब, वहां कांटे होते ही हैं,
गुलाब कांटों से डरते नहीं हैं,
कांटे ही तो उनके रक्षक हैं,
वीरव्रती मुसीबतों से डरते नहीं हैं.
गुलाब की तरह कांटों में रहकर भी,
खिल-खिल खिल-खिल खिलते रहिए,
कांटे संभलकर चलने का सबब बनेंगे,
आप तो बस साहस जुटाकर चलते चलिए.
कांटे भी फूलों की सेज बन जाते हैं,
जब राणा प्रताप से महारथी उस पर सोते हैं,
फूलों की सेज भी कांटों की तरह गड़ती है,
जब कायर कांटों की उपस्थिति से ही रोते हैं.
फूलों की तरह कांटों से भी कर लो दोस्ताना,
शूलों से दामन में खुशियों के रंग भर लो रोजाना,
कांटे ही बन जाते हैं फूलों के लिए छांव,
बाधाओं से मन को विरक्त कर, राही चैन से सो जाना.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244