कविता

हिमालय दर्शन

आइए!
हिमालय के दर्शन करता हूँ
उसकी विशालता को नमन करता हूँ
उससे कुछ सीख लेता हूँ,
हिमालय के गुण सीख लेता हूँ।
अटल, अडिग हिमालय
निर्विकार भाव से संदेश देता है,
न कोई भेद, न कोई विभेद
सबको सम भाव से देखता,
ऊँचा होकर भी गुमान नहीं करता
कुछ न कुछ सबको देने का
उपक्रम ही करता रहता।
मानव, पशु पक्षी पेड़ पौधे
सबको अपना आश्रय देता,
जब जो जैसे चाहता
सबको पूरी छूट देता
तनिक घमंड न करता,
पर स्वाभिमान बनाए रखता
स्वयं किसी से नहीं टकराता
जो घमंड में आकर टकराता
अपना अस्तित्व मिटा जाता।
हिमालय दर्शन का क्या कहें?
पूरा का पूरा जीवन दर्शन
सामने साफ साफ दिखता
हिमालय दर्शन का आशय
समझ में आ जाता,
हिमालय के कदमों में
शीश स्वतः झुक जाता।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921