गीतिका/ग़ज़ल

चलती रही जिंदगी

कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी.
कभी फूलों की सेज पर करवटें बदलती रही जिंदगी,
कभी कांटों की शैय्या पर भी चैन से सोती रही जिंदगी.
कभी आतंक के आतंक से ही आतंकित हो जलती रही जिंदगी,
कभी क्रूरता के दंश को शौर्य से झेलकर भी उछलती-जीती रही जिंदगी.
कभी मानव-धर्म को श्रेष्ठ मानकर बढ़ती रही जिंदगी,
कभी नैतिक मूल्यों में आस्था गंवाकर भी हिलती रही जिंदगी.
कभी सुविधाओं से घिरी रहकर सिसकती रही जिंदगी,
कभी अभावों के गर्त में गिरकर भी मुस्काती रही जिंदगी.
कभी अनुकूल परिस्थितियों में आहें भरती रही जिंदगी,
कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी राहें ढूंढती रही जिंदगी.
कभी कर्मठता के क्रियाकलापों से कूजती रही जिंदगी,
कभी अकर्मण्यता के पाश में भी फंसती रही जिंदगी.
कभी सुख के सान्निध्य में सरकती रही जिंदगी,
कभी दुःख के दारुण दंश से भी बिछलती रही जिंदगी.
कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी,
अक्सर रोशनी को साथ लेकर सबको राह दिखाती रही जिंदगी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244