कविता

बसंत तुम कहाँ हो

हे बसंत तुम कहां
कलियों की पुकार सुनो
भ्रमर का भ्रमण हुआ
तितलियों का अवतरण हुआ

हे बसंत तुम कहां हो
सरसों हे फूली
पलाश भी फूलने को है तैयार
आम्र बौर भी निकलने को बेताब हैं

हे बसंत तुम कहां हो
कलियों ने पट खोले
फूलों ने घूंघट उठाया है
बाग का माली भी मुस्काया

हे बसंत तुम कहां हो
छन छन के धूप खिली
रोशन हुई कायनात
पंछियों ने पंखों को फैलाया

हे बसंत तुम कहां हो
उन्मुक्त पवन बह रही है
सखी से सखी मिल रही है
कोयला राग सुना रही है
हे बसंत तुम कहां हो

— अर्विना

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु