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वे कहते हैं ज़ख्मों के बाज़ार में मुस्कुराहटों को रोते देखा, आसमां के गुलज़ार में सितारों को रोते देखा, जब कहीं न चल सकी चाल उजियारों की, अंधियारों के आज़ार में उजियारों को रोते देखा. फिर भी यह अंत तो नहीं है, वक्त तो अपनी चाल बदलता ही रहता है, आज जो कहते हैं, ज़ख्मों […]
इंसान निकल पड़ा है..
कलयुग का ये कैसा काल चक्र चल पड़ा है…. एक दूसरे का जान लेने के लिए इंसान निकल पड़ा है… हर कोई यहाँ दूसरे को निचे कर के खुद को ऊपर उठाना चहता है मिलते ही मौका मार गिरना चाहता है.. हर कोई चाहता है की मेरा छत हो सबके छतो से उच्चा चाहे इसके […]
नये हुए अनुबंध – नवगीत
नये छंद से, नये बंद से नये हुए अनुबंध नयी सुबह की नयी किरण में नए सपन की प्यास नव गीतों के रस में भीगी मन की पूरी आस लगे चिटकने मन की देहरी शब्दों के कटिबंध नयी हवाएँ, नयी दिशाएँ बरसे नेही, बादल छोटी छोटी खुशियाँ भी हैं इन नैनों का काजल गमक रही […]