गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैने दिल मे तुझको बसा लिया मेरी ज़िंदगी तू संवार दे |
मेरे लफ्ज़ सारे महक उठे मुझे ऐसी कोई बहार दे |

यही इल्तज़ा मेरे हमनवा तेरा साथ उम्र तलक रहे –
युहीं चाहतो का जुनू रहे और उम्र सारी गुजार दें |

तेरा इश्क रब का वो नूर हैमेरी जीस्त जिससे निखर गयी-
दिल कह रहा है पुकार के तुझे प्यार दें बस प्यार दें |

मेरी साँस साँस महक रही मेरी ज़िंदगी है तेरी सनम –
तेरे प्यार का है नशा अजब यही दिल को मेरे करार दे |

वो हसीन लम्हे हसीन पल वो हसीन फूलों की डालियाँ-
वही छाँव हो वही ठाँव हो मुझे आखरी वो दयार दे |

कहीं बांसुरी सी सुनाई दे मदहोश दिल है ‘मृदुल’ बड़ा।
तेरे इश्क का जो सुरूर है मेरा रूप सादा निखार दे ।
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016