कविता

इर्ष्या का सम्राज्य यहां

हाथ न बदले पांव न बदले सूरत वही पुरानी है
हर इंसा के अंदर मिलती बदली हुई कहानी है

अब द्वेश दिलों में फलता फूलता
इर्ष्या का सम्राज्य यहां
प्रेम भाव जो पहले था वो
दिखता है अब आज कहाँ
नेक इरादे कहीं नही हैं
फिसली हुई जवानी है………

सांसे तो उनकी चलती हैं
खुद के भरोसे नही रहे
बुद्धि विवेक न अपनी लगाते
गैर से सीखी बात कहे
कर्जे में जीवन डूबा है
सिमटी हुई रवानी है……….

गांव जो अब तक थे सुंदर
अब वो बहुत बर्बाद हुए
लोग पुराने नही रहे
फसाद नए आबाद हुए
न जाने कैसा (राज) है आया
अब नही आंख में पानी है…..

राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782